मैं तो बस ख़ुशी ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी बिताना चाहता था। बड़े बड़े काम करना चाहता था। पढ़ने में भी अच्छा था और खेलकूद में भी। लेकिन मुझमें एक कमी रह गयी, वो ये कि मैं साफ़ दिल का था, ईमानदार और सच्चा था।
बचपन से पढ़ता सीखता आ रहा था, एक अच्छा इंसान बनो, ईमानदार बनो। बचपन में कहानियां पढ़ीं तो वो भी महापुरुषों की, उनके आदर्शों की। रामायण हो या महाभारत, हर जगह लिखा है सत्य की जीत होती है। लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता गया, मेरा सच से सामना हुआ। सारी किताबी बातें और आदर्श पीछे छूट गए। आज मैं जिस दुनिया में रहता हूँ यहाँ ईमानदार होना और साफ़ दिल का होना मूर्खता है। यहाँ मुझ जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं।
अब हर रोज मैं खुद से एक जंग लड़ता हूँ, क्योंकि मैं मज़बूर हूँ। यहाँ बाकियों की तरह नहीं बने तो जीना मुश्किल हो जाएगा। मैं अपने संस्कारों और आदर्शों के साथ समझौता नहीं करना चाहता, लेकिन मुझे करना पड़ता है। अगर ये दुनिया ऐसी ही है तो क्यों मुझे सच और आदर्शों के झूठे पाठ पढ़ाए गए! क्यों दी गयी मुझे अच्छा इंसान बनने की सीख!
पता नहीं ये दुनिया मुझे जीना सिखा रही है या मेरी बेबसी का एहसास दिला रही है। कितना कमज़ोर हूँ मैं, लाचार हूँ। क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि मेरा दिल साफ़ है? मैं शरीफ हूँ?
बचपन से पढ़ता सीखता आ रहा था, एक अच्छा इंसान बनो, ईमानदार बनो। बचपन में कहानियां पढ़ीं तो वो भी महापुरुषों की, उनके आदर्शों की। रामायण हो या महाभारत, हर जगह लिखा है सत्य की जीत होती है। लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता गया, मेरा सच से सामना हुआ। सारी किताबी बातें और आदर्श पीछे छूट गए। आज मैं जिस दुनिया में रहता हूँ यहाँ ईमानदार होना और साफ़ दिल का होना मूर्खता है। यहाँ मुझ जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं।
अब हर रोज मैं खुद से एक जंग लड़ता हूँ, क्योंकि मैं मज़बूर हूँ। यहाँ बाकियों की तरह नहीं बने तो जीना मुश्किल हो जाएगा। मैं अपने संस्कारों और आदर्शों के साथ समझौता नहीं करना चाहता, लेकिन मुझे करना पड़ता है। अगर ये दुनिया ऐसी ही है तो क्यों मुझे सच और आदर्शों के झूठे पाठ पढ़ाए गए! क्यों दी गयी मुझे अच्छा इंसान बनने की सीख!
पता नहीं ये दुनिया मुझे जीना सिखा रही है या मेरी बेबसी का एहसास दिला रही है। कितना कमज़ोर हूँ मैं, लाचार हूँ। क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि मेरा दिल साफ़ है? मैं शरीफ हूँ?