प्यारी बिटिया,
शायद पहला ख्याल तुम्हारे मन में यही होगा कि मैं ये चिट्ठी अभी से क्यों लिख रहा हूं, जबकि मैं खुद पूरे 21 साल का नहीं हुआ। मेरी बच्ची, शायद आज से दस साल बाद हालात ऐसे न रहें। सुधर जाएं या फिर बदतर हो चुके हों, इसलिए यही सही वक़्त है तुम्हें बताने का कि जब तक तुम मेरी उम्र की होगी हमारा रिश्ता कैसा होगा।
मैं चाहता था कि काश! मैं लड़की होता। हंसो नहीं बुद्धू, दिखा देना चाहता था सबको कि एक लड़की के तौर पर मैं कौन हूं। पलटकर जवाब देना चाहता था सबको। लड़का हूं तब भी जवाब दिए, फटकार लगाई, आवाज़ उठाई, लेकिन एक सच को नहीं झुठला पाया कि मैं लड़की नहीं हूं और मैं लड़की होने का दर्द नहीं जानता। बस देख सकता हूं लड़कियों की तकलीफ, उसे महसूस नहीं कर सकता। पता है, मुझे अपने जैसा बेटा नहीं, तुम्हारे जैसी बेटी ही चाहिए थी।
क्या लड़की होना सिर्फ दर्द और तक़लीफ़ देता है! नहीं मेरी बच्ची, कोई दर्द नहीं झेलोगी तुम, कोई तकलीफ नहीं होगी तुम्हें। कोई पाबन्दी, कोई रोकटोक नहीं झेलोगी तुम। बचपन में गैस और बर्तनों से भी खेलोगी और डॉक्टर की किट से भी। बन्दूक से भी खेलना और गुड़िया से भी, लेकिन तुम अपनी गुड़िया की शादी नहीं रचाओगी, उसे पढ़ाओगी और लड़ना सिखाओगी। बचपन में तुम्हें कमज़ोर होने का झूठा एहसास नहीं दिलाऊंगा, तुम सब कुछ कर सकती हो, यह बताऊंगा।
मेरी बच्ची! स्कूल में अक्सर तुम्हें लड़की-लड़की सुनने को मिल जाएगा। शर्माना नहीं, गर्व महसूस करना। हंसी आए तो छुपाकर नहीं, खिलखिलाकर हंसना। सबसे बात करना, खूब सवाल करना। कुछ भी कहने में संकोच मत करना। कोई लाख समझाए क्या सही है क्या गलत, कोई सीमा रेखा नहीं होगी तुम्हारे लिए। लड़की हो, ये मत करो, वहां मत जाओ! खूब चीखेंगे लोग, उनकी एक मत सुनना। बेफिक्र भागना, दौड़ लगाना, उड़ने की कोशिश करना। घर आकर मुझे सारी कहानियां सुनाना और हम साथ ठहाके लगाएंगे।
जब तुम ऐसा करने लगोगी न! लोगों को परेशान होते और तिलमिलाते हुए देखोगी। तुम्हारा हर आज़ाद कदम उनको अखरेगा और ऐसे में अगर कोई तुम्हारा हाथ पकड़कर आगे बढ़ने से रोके, अपनी पूरी ताकत से घूंसा मारकर उसका मुंह तोड़ देना। कभी कोई तुमसे लड़ पड़े, तो रोने मत लगना, न तो पापा से शिकायत कर दूंगी कहकर भाग आना। तुम्हें लगता है तुम सही हो, तो बस डटी रहना, हार मत मानना।
मैं अभी जितना बड़ा हूं, जब तुम इतने की हो जाओगी, सब बदल जाएग। जब तुम रास्ते में निकलोगी, लोग तुम्हें घूरेंगे। नज़रें मत चुराना, उनकी आंखों में आंखें डालकर उन्हें घूरना और एहसास दिलाना कि तुम कौन हो। कोई बोले तुमसे, इसका इंतज़ार किए बगैर ही उसे करारा जवाब देना। अगर किसी की हिम्मत आगे बढ़कर तुम्हें छूने की हो तो कदम पीछे मत खींचना, आगे बढ़कर ऐसा वार करना कि उसे भी ज़िन्दगी भर याद रहे। बाकी एक और ऑप्शन है, तुम चाहो तो एक छोटी हथौड़ी अपने पर्स में रख लेना। ओहो! इसलिए नहीं कि तुम डरती हो, इसलिए जिससे सिर फोड़ने में आसानी हो। अपनी ओर उठने वाली हर नज़र से नज़र मिलाकर उसे शर्मसार करना। तुमपर कोई वार करे तो भागने के बजाय उसपर दोगुनी तेजी से वार करना। उसका सिर ज़रूर फोड़ना!
जब तुम इतनी हिम्मत करने लगोगी मेरी बच्ची, सब तुमको लेकर राय बनाएंगे। तुम्हारे चलने, बैठने और बोलने के तरीके से भी उन्हें दिक्कत होगी। तुम किसी की एक मत सुनना, जैसा चाहो रहना। तुम्हारे कपड़े भी उन्हें अच्छे नहीं लगेंगे, लेकिन इतना पता है, उनकी सोच से ज़्यादा छोटे नहीं होंगे। कभी मत सुनना उनकी मेरी बच्ची, अपनी सुनना। डरने की गलती मत करना, डरकर सौ साल जीने से बेहतर होगा एक आज़ाद दिन जीना। अपने लिए ही नहीं, सबके लिए जीना। मुझे पता है तुम यह सोचकर आगे नहीं बढ़ जाओगी कि गड़बड़ है भी तो क्या, मेरे साथ तो नहीं। हर दोस्त के लिए लड़ना, हर अंजान के लिए, हर लड़की के लिए लड़ना। आवाज़ उठाना और अगर कोई न सुने तो हथियार उठाने में वक़्त मत लगाना।
मैं ये नहीं कहूंगा कि खुदपर भरोसा है जो तुम्हें सही-गलत का मतलब सिखा दूंगा। तुमपर भरोसा है मेरी बच्ची, तुम जो करोगी सही होगा। अगर गलती से कोई कदम उठा भी लिया, तो ठोकर लगेगी और सीख जाओगी। तुम्हारा रक्षक नहीं बनूंगा, तुम्हें लड़ना सिखाऊंगा। हरदम साथ नहीं चलूंगा, अकेले चलना सिखाऊंगा। पिंजरे में बंद नहीं करूंगा, उड़ना सिखाऊंगा। जैसा कोई अपनी बेटी को नहीं बना सका, तुझे ऐसी बेटी बनाऊंगा।
शायद पहला ख्याल तुम्हारे मन में यही होगा कि मैं ये चिट्ठी अभी से क्यों लिख रहा हूं, जबकि मैं खुद पूरे 21 साल का नहीं हुआ। मेरी बच्ची, शायद आज से दस साल बाद हालात ऐसे न रहें। सुधर जाएं या फिर बदतर हो चुके हों, इसलिए यही सही वक़्त है तुम्हें बताने का कि जब तक तुम मेरी उम्र की होगी हमारा रिश्ता कैसा होगा।
मैं चाहता था कि काश! मैं लड़की होता। हंसो नहीं बुद्धू, दिखा देना चाहता था सबको कि एक लड़की के तौर पर मैं कौन हूं। पलटकर जवाब देना चाहता था सबको। लड़का हूं तब भी जवाब दिए, फटकार लगाई, आवाज़ उठाई, लेकिन एक सच को नहीं झुठला पाया कि मैं लड़की नहीं हूं और मैं लड़की होने का दर्द नहीं जानता। बस देख सकता हूं लड़कियों की तकलीफ, उसे महसूस नहीं कर सकता। पता है, मुझे अपने जैसा बेटा नहीं, तुम्हारे जैसी बेटी ही चाहिए थी।
क्या लड़की होना सिर्फ दर्द और तक़लीफ़ देता है! नहीं मेरी बच्ची, कोई दर्द नहीं झेलोगी तुम, कोई तकलीफ नहीं होगी तुम्हें। कोई पाबन्दी, कोई रोकटोक नहीं झेलोगी तुम। बचपन में गैस और बर्तनों से भी खेलोगी और डॉक्टर की किट से भी। बन्दूक से भी खेलना और गुड़िया से भी, लेकिन तुम अपनी गुड़िया की शादी नहीं रचाओगी, उसे पढ़ाओगी और लड़ना सिखाओगी। बचपन में तुम्हें कमज़ोर होने का झूठा एहसास नहीं दिलाऊंगा, तुम सब कुछ कर सकती हो, यह बताऊंगा।
मेरी बच्ची! स्कूल में अक्सर तुम्हें लड़की-लड़की सुनने को मिल जाएगा। शर्माना नहीं, गर्व महसूस करना। हंसी आए तो छुपाकर नहीं, खिलखिलाकर हंसना। सबसे बात करना, खूब सवाल करना। कुछ भी कहने में संकोच मत करना। कोई लाख समझाए क्या सही है क्या गलत, कोई सीमा रेखा नहीं होगी तुम्हारे लिए। लड़की हो, ये मत करो, वहां मत जाओ! खूब चीखेंगे लोग, उनकी एक मत सुनना। बेफिक्र भागना, दौड़ लगाना, उड़ने की कोशिश करना। घर आकर मुझे सारी कहानियां सुनाना और हम साथ ठहाके लगाएंगे।
जब तुम ऐसा करने लगोगी न! लोगों को परेशान होते और तिलमिलाते हुए देखोगी। तुम्हारा हर आज़ाद कदम उनको अखरेगा और ऐसे में अगर कोई तुम्हारा हाथ पकड़कर आगे बढ़ने से रोके, अपनी पूरी ताकत से घूंसा मारकर उसका मुंह तोड़ देना। कभी कोई तुमसे लड़ पड़े, तो रोने मत लगना, न तो पापा से शिकायत कर दूंगी कहकर भाग आना। तुम्हें लगता है तुम सही हो, तो बस डटी रहना, हार मत मानना।
मैं अभी जितना बड़ा हूं, जब तुम इतने की हो जाओगी, सब बदल जाएग। जब तुम रास्ते में निकलोगी, लोग तुम्हें घूरेंगे। नज़रें मत चुराना, उनकी आंखों में आंखें डालकर उन्हें घूरना और एहसास दिलाना कि तुम कौन हो। कोई बोले तुमसे, इसका इंतज़ार किए बगैर ही उसे करारा जवाब देना। अगर किसी की हिम्मत आगे बढ़कर तुम्हें छूने की हो तो कदम पीछे मत खींचना, आगे बढ़कर ऐसा वार करना कि उसे भी ज़िन्दगी भर याद रहे। बाकी एक और ऑप्शन है, तुम चाहो तो एक छोटी हथौड़ी अपने पर्स में रख लेना। ओहो! इसलिए नहीं कि तुम डरती हो, इसलिए जिससे सिर फोड़ने में आसानी हो। अपनी ओर उठने वाली हर नज़र से नज़र मिलाकर उसे शर्मसार करना। तुमपर कोई वार करे तो भागने के बजाय उसपर दोगुनी तेजी से वार करना। उसका सिर ज़रूर फोड़ना!
जब तुम इतनी हिम्मत करने लगोगी मेरी बच्ची, सब तुमको लेकर राय बनाएंगे। तुम्हारे चलने, बैठने और बोलने के तरीके से भी उन्हें दिक्कत होगी। तुम किसी की एक मत सुनना, जैसा चाहो रहना। तुम्हारे कपड़े भी उन्हें अच्छे नहीं लगेंगे, लेकिन इतना पता है, उनकी सोच से ज़्यादा छोटे नहीं होंगे। कभी मत सुनना उनकी मेरी बच्ची, अपनी सुनना। डरने की गलती मत करना, डरकर सौ साल जीने से बेहतर होगा एक आज़ाद दिन जीना। अपने लिए ही नहीं, सबके लिए जीना। मुझे पता है तुम यह सोचकर आगे नहीं बढ़ जाओगी कि गड़बड़ है भी तो क्या, मेरे साथ तो नहीं। हर दोस्त के लिए लड़ना, हर अंजान के लिए, हर लड़की के लिए लड़ना। आवाज़ उठाना और अगर कोई न सुने तो हथियार उठाने में वक़्त मत लगाना।
मैं ये नहीं कहूंगा कि खुदपर भरोसा है जो तुम्हें सही-गलत का मतलब सिखा दूंगा। तुमपर भरोसा है मेरी बच्ची, तुम जो करोगी सही होगा। अगर गलती से कोई कदम उठा भी लिया, तो ठोकर लगेगी और सीख जाओगी। तुम्हारा रक्षक नहीं बनूंगा, तुम्हें लड़ना सिखाऊंगा। हरदम साथ नहीं चलूंगा, अकेले चलना सिखाऊंगा। पिंजरे में बंद नहीं करूंगा, उड़ना सिखाऊंगा। जैसा कोई अपनी बेटी को नहीं बना सका, तुझे ऐसी बेटी बनाऊंगा।
तुम्हारा, बुद्धू पापा!
प्राणेश
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