Tuesday, 19 May 2015

एक साल की हुई भाजपा सरकार, बनारस को अब भी मोदी का इंतज़ार

       गंगा के तट पर बसी पावन नगरी वाराणसी ने पिछले साल जब देश का प्रधानमंत्री चुनकर भेजा तो ऐसा लगा कि गंदगी और बदहाली की शिकार वाराणसी को एक नयी पहचान मिलेगी। विकास और अच्छे दिनों की आस में वाराणसी की जिस जनता ने अपना भावी प्रधानमंत्री चुना था, मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के बाद अब उन चेहरों पर निराशा साफ देखी जा सकती है। आलम यह है कि बुनकरों की हालत हो या सीवर की समस्या, इन मुद्दों पर सुधार की बातें सिर्फ एक छलावा महसूस हो रहीं हैं।
   नवंबर में वाराणसी के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनकरों की हालत सुधारने की बात करते हुए बनारसी साड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का वादा किया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि गुजरात के कुछ उद्योगपति अपनी अत्याधुनिक मशीनें बनारस में लेकर आ रहे हैं लेकिन महंगी होने की वजह से यह बुनकरों की पहुँच से दूर हैं। सफाई का मुद्दा बनारस में हमेशा से ही उठाया जाता रहा है। लोगों की मानें तो शहर में लगभग 2000 जगहों पर मेनहोल खुले पड़े हैं, जिससे दिन हो या रात यहाँ से गुजरना मुश्किल है। स्थानीय लोगों को तो अब इस गंदगी व दुर्गंध की आदत पड़ चुकी है। कूड़े के निस्तारण के लिए कम से कम 10 प्लांट लगाए जाने की आवश्यकता है, जबकि यहाँ करसड़ा में बना एकमात्र प्लांट भी बंद पड़ा है।
     मोदी सरकार के एक साल की बात पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और जाने-माने कथाकार डॉ. काशीनाथ सिंह कहते हैं कि अच्छे दिनों की आस में बैठे लोग इंतज़ार करते रह गए और अब तक कुछ नहीं हुआ। बनारस को जापान के क्योटो जैसा बनाने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि इसका कोई खाका तैयार नहीं हो सका है। बनारसी साहित्यकार काशीनाथ का मानना है कि काशी बदलाव बहुत मुश्किल से स्वीकार करती है क्योंकि यहाँ की संस्कृति किसी प्रतिकूल बदलाव को स्वीकार करने की अनुमति नहीं देती। काशीनाथ ने भाजपा के घर वापसी अभियान पर भी व्यंग्य करते हुए कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में धार्मिक कर्मकांड ज़रूर बढ़ा है। चुनाव के दौरान मोदी का समर्थन करने वाले मठाधीशों का भी मानना है कि इस एक वर्ष में मोदी सरकार का भी वाराणसी की ज़मीन पर नहीं उतरा है और जनप्रतिनिधि दुनिया में घूमकर सेल्फी लेने में व्यस्त हैं।
  बनारस के घाट, शाम को होने वाली आरतियाँ और मंदिर के घंटों की आवाज़ सब कुछ अब भी पहले जैसा है, लेकिन काशी के लोगों के मन में विकास और सुधार की उम्मीद धुंधली पड़ती नज़र आ रही है। जो भी हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में अपना भविष्य देख रही काशी को अब भी मोदी का इंतज़ार है।