उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो बड़ी पार्टियों की साख है, पहली
सत्तारूढ़ सपा और दूसरी बसपा। लेकिन अगर गुंडागर्दी को लेकर इनके रवैये की बात की
जाए तो बसपा का पलड़ा भारी भारी नज़र आता है। जहां बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री
मायावती अपने दागी विधायकों पर कार्रवाई करने में कहीं आगे थीं वहीं पिछले कई
दिनों से सुर्खियों में बने पत्रकार जागेन्द्र सिंह हत्याकांड में आरोपी सपा
विधायक व राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, यहाँ तक कि वह अपने पद पर अब तक काबिज हैं। यह तो सिर्फ एक बानगी है, पार्टी के कई विधायकों के बड़बोले होने के बावजूद सपा कोई कार्रवाई करती
नहीं दिखती। ऐसा न हो कि इस सुस्त रवैये के चलते अगले विधानसभा चुनाव में उसे मुंह
की खानी पड़े।
उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में एक स्वतंत्र पत्रकार
जागेन्द्र सिंह को जलाकर हत्या का मामला सामने आया था,
जिसमें परिजनों ने राज्यमंत्री के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मौत से
पहले पत्रकार ने भी अपने बयान में घटना को मंत्री की साजिश बताया था। पिछले कई
दिनों से खबरिया चैनलों और अखबारों में छाई सुर्खियों और मंत्री की गिरफ्तारी की
मांग के बावजूद भी न तो गिरफ्तारी हुई न ही कोई पूछताछ। हैरानी की बात तो यह है कि
पार्टी ने मंत्री को उनके पद से भी नहीं हटाया और अब उनकी वकालत में लगी है।
विवादों की सूची में कई अन्य बड़े नेता हैं जिनके खिलाफ
पार्टी का रवैया उदासीन है। बात पिछले दिनों तोताराम यादव के महिलाओं के खिलाफ
दिये गए बयान की हो या फिर कैलाश चौरसिया के रंगदारी न देने पर मारपीट करने की, इस
मामले में तो प्राथमिकी तक दर्ज न हो सकी और न ही पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया दी। साथ
ही पूर्व राज्यमंत्री इकबाल को बाराबंकी टोल प्लाज़ा पर की गई गुंडई के मुकदमे में
नामजद तक नहीं किया गया। मतरियों और दबंगों की गुंडागर्दी से परेशान लोगों की ओर
ध्यान न देकर सपा अपने मंत्रियों का बचाव कर रही है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री को पार्टी
की खराब होती छवि की भी कोई चिंता नहीं है।
इस मामले में पिछली बसपा सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री
मायावती को काफी सख्त माना जाता था। हो भी क्यों न, बसपा सुप्रीमो ने हर दागी
विधायक को जेल पहुंचाया था भले ही वह कितना करीबी क्यों न रहा हो। मायावती ने तो
तत्कालीन बसपा सांसद उमाकांत यादव को अपने घर बुलाकर गिरफ्तारी कारवाई थी। आपराधिक
मुकदमों में आरोपी तत्कालीन खाद्यमंत्री आनंद सेन,
पीडबल्यूडी मंत्री शेखर तिवारी, मतस्य विकास मंत्री यमुना
निषाद जैसे दागियों को जेल भेजने के साथ ही सरकार ने खुद इनके खिलाफ केस लड़ा था। तत्कालीन
बांदा विधायक पुरुषोत्तम नरेंद्र दिवेदी और बुलंशहर के विधायक गुड्डू पंडित को भी पार्टी
प्रमुख ने जेल पहुंचाया था। यही वजह थी कि पार्टी प्रमुख के रवैये से दागी थरथर
कांपते थे।
लेकिन वर्तमान समय में सत्तारूढ़ सपा दागियों का साथ क्यों
दे रही है, इसका सीधा जवाब यह है कि कई दबंग विधायकों के साथ पार्टी का
जातिगत वोट बैंक जुड़ा है। ऐसे में उनके खिलाफ कार्रवाई वोट बैंक को कमजोर कर सकती
है। लेकिन मुख्यमंत्री को यह भी समझना होगा कि दागियों पर कार्रवाई न करने से खराब
होती पार्टी की छवि भी आगामी विधानसभा चुनाव में सपा की नैया डुबो सकती है।