Sunday, 2 August 2015

पत्रकार जगेन्द्र का सच : हत्या या मज़ाक

          पिछले दो माह से सभी बड़े अखबारों और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों की सुर्खियां रहे उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के पत्रकार जगेन्द्र सिंह’,जिनकी पुलिस ने उनके घर में ही जलाकर कथित हत्या कर दी और जिन्होंने जाते-जाते भी अपने लिए सबकी सहानुभूति बटोर ली। सुर्खियां भी कुछ यूं रहीं- पत्रकार की निर्मम हत्या, पुलिसवालों ने पत्रकार को जलाकर मारा, कलम के सिपाही की हत्या, मंत्री के खिलाफ लिखा तो पुलिस ने ली जान। मीडिया में जागेन्द्र की मौत की खबर आने के बाद से ही पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे और आरोपी मंत्री के इस्तीफे की मांग तेज़ हो चली। इंसाफ की मांग कर श्रद्धांजलि देने वाले हाथ में मोमबत्तियां लेकर सड़क पर निकल पड़े और मृत पत्रकार का परिवार भी धरने पर बैठ गया।

जगेन्द्र सिंह (फाइल)
 यूं तो मामला पुराना हो चला है और ठंडे बस्ते में जाने को है,लेकिन यह लेख सिर्फ इतना उजागर करना चाहता है कि हम कितने भोले हैं और हमें कोई कितनी आसानी से मूर्ख बना सकता है। अगर मैं यह कहूँ कि जगेन्द्र की हत्या ही नहीं हुई, बल्कि खुद को आग लगाना उसकी सोची समझी साजिश थी तो शायद आपको इस बात पर विश्वास न हो। अब कोई खबरिया चैनल इस बात को सामने नहीं लाएगा कि किस तरह कथित पत्रकार जगेन्द्र मौत को गले लगाते हुए आप सबको टोपी पहना गया।

इस बारे में ज़्यादा विस्तार से कुछ लिखूँ इससे पहले ज़रूरी है कि आपको पूरे घटनाक्रम की याद दिला दी जाये। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में जगेन्द्र सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक पर उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के खिलाफ खबरें पोस्ट कर रहे थे। जगेन्द्र के ऐसा करने से गुस्साए सपा मंत्री ने पहले तो उसके खिलाफ फर्जी मुकदमे चलवाए और फिर पुलिस को घर भेजकर उसकी हत्या करवा दी।

रिपोर्ट्स को रोचक और मसालेदार बनाने के लिए कई यहाँ तक लिखा गया कि पुलिसवालों ने घर में घुसकर तोड़फोड़ की और फिर जगेन्द्र पर पेट्रोल छिड़ककर बड़ी ही क्रूरता और निर्ममता से उसे मौत के घाट उतार दिया। आपकी तरह मैंने भी एक बार को इस बात पर विश्वास कर लिया कि इतनी बेरहमी से उसकी हत्या सिर्फ इसलिए की गयी क्योंकि उसने सच का साथ दिया। अच्छा हुआ जो यह अनूठा सच समय रहते सामने आ गया और आपको भी इससे परिचित कराने का मन बना लिया।
मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा

मीडिया रिपोर्ट्स से हटकर पर्दे के पीछे के सच्चाई कुछ इस तरह है कि कथित स्वतंत्र पत्रकार जगेन्द्र कुछ अन्य नेताओं के इशारे पर सपा मंत्री के खिलाफ पोस्ट कर रहे थे, हो सकता है इसके बदले में उन्हें कुछ लाभ भी दिया जा रहा हो। दरअसल, मंत्री राममूर्ति के खिलाफ पोस्ट करवाने वाले यह नेता उनकी लालबत्ती छीनकर खुद पद हासिल करना चाहते थे। यह सच्चाई खुद जगेन्द्र ने मौत से पहले अपने बेटे राहुल को बताई।

मौत से पहले पुलिस को दिये बयान में जगेन्द्र ने जहां कई बार यह बात दोहराई कि मंत्री राममूर्ति सिंह के इशारे पर पुलिसवालों ने मुझे जला दिया, वहीं उसके बेटे राहुल ने पूरी बात से पर्दा हटाते हुए साफ कर दिया कि पुलिस को डराने के मकसद से जगेन्द्र ने खुद आग लगाई थी जो ज़्यादा भड़क गयी और उसे बचाया नहीं जा सका। राहुल ने बताया कि जब पुलिस पापा को गिरफ्तार करने आई तो पापा ने उसे डराने के लिए खुदपर हल्की आग लगा ली, लेकिन गलती से आग भड़क उठी और उनकी मौत हो गयी।

यहाँ एक बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि इस मामले में किसी तरह की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि राहुल का यह बयान आरोपी पुलिसकर्मियों व मंत्री को बचाने के लिए सामने लाया गया हो। लेकिन जो भी हो, राहुल अपने पिता की मौत को ख़ुदकुशी बताने के साथ ही दावा कर रहा है कि उसपर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है।

सवाल यह उठता है कि अगर राहुल को सच पता था तो उसने रिपोर्ट क्यों दर्ज़ कराई और परिवार ने सरकारी सहायता की मांग पर धरना क्यों दिया? साफ है अगर ऐसा न किया जाता तो न तो जगेन्द्र लोगों की नज़र में हीरो बन पाते और न ही परिवार को सरकार की तरफ से 30 लाख की आर्थिक सहायता और दोनों बेटों को नौकरी मिलती। आखिर नेताओं का मोहरा बन शहीद हुए जगेन्द्र अपने परिवार का भला तो कर ही गए।

अब बात आती है मीडिया में ईमानदार पत्रकार बनकर उभरे जगेन्द्र की, जिन्होंने पहले तो अपने पेशे के साथ बेईमानी करते हुए मंत्री को बदनाम करने के लिए नेताओं के इशारे पर खबरें पोस्ट कीं और बाद में अपनी गलती मंत्री राममूर्ति व पुलिस पर मढ़ते हुए दुनिया से विदा ली। मीडिया को भी मसाला कुछ यूं मिला कि बेबाक और ईमानदार जगेन्द्र की सच लिखने के चलते हत्या की गयी। हालांकि अब स्पष्ट है कि पत्रकारों व नागरिकों की सहानुभूति के पात्र बने जगेन्द्र की मौत हत्या नहीं बल्कि महज़ एक हादसा थी।
राहुल (जगेन्द्र का बेटा)

एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक भावना प्रधान देश है, यहाँ लोग जल्दी भावुक हो जाते हैं। यही कारण है कि मीडिया कि खबरें और बॉलीवुड की फिल्में कुछ इसी अंदाज़ में तैयार की जाती हैं जो लोगों के दिल को छू जाएँ। मीडिया में अथवा सोशल साइट्स पर आने वाली ऐसी खबर को देखते ही हमारी तर्क-शक्ति भावनाओं के आगे बौनी साबित होती है। एक पल में हम किसी को राष्ट्रीय नायक मान बैठते हैं तो किसी को अपराधी।


आवश्यक है कि हम एक तार्किक दृष्टिकोण विकसित करें और किसी भी खबर या वायरल चित्र की सत्यता को परखने के बाद ही उसपर विश्वास करें। अगर आपमीडिया व सोशल साइट्स की सभी खबरों पर आँख मूँद कर यूं ही भरोसा करते रहे, तो न जाने कितने जगेन्द्र आपको टोपी पहना जाएँगे और आपको पता भी नहीं चलेगा।