Friday, 20 March 2015

खिलौना - प्राणेश तिवारी

   
कितने अच्छे थे वो दिन जब हम छोटे थे,
कोई चाहत हो तो जानबूझकर रोते थे।
चन्द खिलौनों में सिमटी थी हमारी दुनिया,
बहलाकर उनसे मन मिलती थी खुशियां।
वक्त के साथ चलना जमाने ने सिखा दिया,
सच कहूं तो मुझे ही एक खिलौना बना दिया।

जिसने भी चाहा खेल लिया,
भर गया जो मन तो फेंक दिया।
कुछ कदम चले मेरे साथ रहे,
अगले पल मुझको छोड़ दिया।
बचपन का रोना क्या भूले,
दुनिया ने मुझको रुला दिया,
मुझे एक खिलौना बना दिया।

जब कोई खिलौना टूट जाता था,
मैं ऊपरवाले से रूठ जाता था।
अब रोज टूटता हूं पर उठ जाता हूं,
रोता है दिल फिर भी मुस्कराता हूं।
हर किसी के हैं यहां दो चेहरे,
मुझको भी मुखौटा लगा दिया,
मुझे एक खिलौना बना दिया।

अक्सर मेरे खिलौने खो जाया करते थे,
सपनों में भी याद आया करते थे।
उन खिलौनों की तरह मैं भी खोया हूं कहीं,
पर मुझे याद करने वाला यहां कोई नहीं।
‘प्राणेश‘ को तुम सब याद रहे,
फिर तुम सबने क्यों भुला दिया,
मुझे एक खिलौना बना दिया।
     - प्राणेश तिवारी

Wednesday, 18 March 2015

Meri Kahani

                      सच कहूं तो ये मेरी ही कहानी है, आज जब रहा न गया तो आपसे कहने का मन बना लिया। एक इन्सान जो हर किसी को खुश देखना चाहता है और हमेशा कोशिश करता है कि कभी किसी का दिल न दुखाये, वो क्यों खुश नहीं रह पाता? शायद आपको लगे इसमें जरूर उसकी ही कोई गलती होगी। लेकिन आज मैं आपको एक सच से रूबरू करवाता हूं। किसी और के कहने से शायद मैं न मानता लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने यह अनुभव किया है। अजीब लगता है यह कहना कि आज की दुनिया अच्छे लोगों के लिए बहुत बुरी है। कहां से शुरू करुं, कुछ समझ नहीं आ रहा। सबने हमेशा कहा कि अच्छा सोचो तो अच्छा होगा, मैंने किया। अच्छा तो नहीं लेकिन ऐसा कुछ हुआ जिसकी मुझे तो उम्मीद नहीं थी। दूसरों को मौके देना, समझौते करना, अच्छी ही तो बात है। लेकिन कैसा लगता है जब जिनके लिए आप समझौते करें, उन्हें आपसे कोई मतलब ही न रहे। आज काम बना और कल को सारे गायब। ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि मैंने लोगों को अक्सर कहते सुना है कि यह दुनिया बहुत मतलबी है। इसके बाद मैंने लोगों को माफ करने की आदत डाल ली, सुना था माफ करने से गलती करने वाले को पछतावा होता है। माफ करने से बड़ी दूसरी कोई सजा नहीं। जमाना कुछ यूं बदला है कि आप माफ करते रहें, लोग जानबूझकर गलतियां करते रहेंगे। आज माफ करने वाला कमजोर समझा जाता है। आपको गाली देकर जाने वाले को आप माफ करिये, अगली बार फिर गाली खाने को मिलेगी। कहानियों वाले आदर्श अब ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। सब कुछ आजमाकर देखा, खुद को बदलकर देखा, लेकिन अपने आदर्शों से समझौता नहीं कर पाया। सबको लगता है मैं पुराने जमाने का हूं, कहीं पीछे रह गया हूं, जमाने के साथ आगे नहीं बढ़ पाया। सच ही तो है, मैं झूठ बोलना, धोखा देना, बेईमानी करना जो नहीं सीख सका। जमाना तो इसमें कहीं आगे निकल चुका है न। क्या यह मेरी गलती है? कुछ करना चाहता हूं तो मेरे ही चार साथी मुझे ढकेलकर पीछे कर देते हैं। मैं सबके साथ चलना चाहता हूं लेकिन वो मुझसे आगे निकलने को बहादुरी मानते हैं। मुझे पीछे करना, दबाना, जाने क्या मिलता है इसमें। मैंने खुद को सीमाओं में कभी नहीं बांधा, तो क्यों सब मेरी सीमायें तय कर रहे हैं? मैं उड़ना चाहता हूं तो मेरे पंख कतर दिये जाते हैं। मुझे पिंजरे में बंद करने की कोशिश बेकार है क्योंकि मैंने कभी किसी को मेरे फैसले लेने का हक नहीं दिया। अब मैं थक चुका हूं इस सब से, क्या करुं कुछ समझ नहीं आता। कभी-कभी सो तक नहीं पाता, लेकिन हर सुबह इसी उम्मीद से उठता हूं कि आज जरूर कुछ अच्छा कर सकूंगा। क्या करुं, आप सबके सामने बहुत छोटा हूं। चलना सीख रहा हूं, ठोकरें तो लगेंगी ही। एक बात तो तय है, न तो मैं खुद को बदलूंगा और न ही हार मानूंगा। बचपन से ही जि़ददी हूं न। उम्मीद करता हूं मेरी कहानी का अन्त इस शुरूआत की तरह बोझिल नहीं होगा।