हिंट तो मोईजी ने इंटरव्यू में दे दिया था, मैं ही समझ नहीं पाया। आज फिर उनसे किए सवाल और उनके जवाब याद आ गए। तीन महीने पहले पीएमओ ने जो सवाल मंगवाए थे, उनमें से पांच ही वापस आए। कहा गया, मोईजी बस इत्ता ही तैयार कर पाए हैं। तब पता चला कि राउल बाबा की चिल्लमचिल्ली की वजह से मोईजी की मेमोरी वीक हो गई है। ऐसा न होता तो मोईजी 'पुडुचेरी को वणक्कम' थोड़ी बोलते, 'हेहेहे व्यापारी' वाली लाइन के आगे गोल-गोल घुमा दिए होते। बहुत दिन से विदेश नहीं गए हैं बेचारे, और तो और टिरम्प चचा ने 26 जनवरी को इंडिया आने से इनकार कर दिया है।
मोईजी मुझे इंटरव्यू देंगे ये जानने के बाद मैं उसी स्ट्रेस में आ गया था, जिसमें तीन राज्यों में हारने के बाद हमारे मोईजी थे। अब वो सदन में सत्र शुरू होने से पहले प्रेस कांफ्रेंस किए दे रहे थे, खुद आईटी सेल परेशान थी कि मोईजी विरोधियों को मीम मटीरियल क्यों दे रहे हैं। राममंदिर का नाटक अलग चल रहा था, ऊपर से शिवसेना भी उत्पात मचाए हुए थी। कुल मिलाकर सिचुएशन बीजेपी के कंट्रोल से बाहर थी और कांग्रेस के 70 साल वाली पंचलाइन भी पब्लिक पर असर नहीं कर रही थी। ऐसे में मोईजी मुझे इंटरव्यू देंगे, ये बात समझ नहीं आ रही थी। पांचों सवाल एक पर्ची में लिए मैं समझ नहीं पा रहा था, 'मोईजी ने मुझे क्यों चुना?'
मुझे लगा पक्का मोईजी भयानक स्ट्रेस में हैं, वरना न तो मैंने मोईजी के फ्रेम वाली फ़ोटो अबतक लगाई थी और न ही 'मोई ही विकल्प' जैसा कुछ पोस्ट किया था। यही सोचते-सोचते सुबह हो गई। मैं 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर के बाद, पतंजलि के स्वदेशी ट्राउजर-कुर्ते में सजकर स्टूडियो आ गया। थोड़ी देर में मोईजी आते ही होंगे, किसी ने कहा। मेरी सवालों वाली पर्ची कहीं खो गई थी। पांचों सवाल याद ज़रूर थे लेकिन दिमाग में सीक्वेंस महागठबंधन के समीकरण की तरह गड़बड़ा रहा था। मैं रामविलास की तरह कंफ्यूज था, इंटरव्यू लूं या न लूं। फिर सोचा कि दिखेंगे मोईजी ही, मुझे तो बचे हुई फुटेज में बस टीवी पर आना है। मूंछों पर ताव दिया कि तभी हलचल बढ़ी और मोईजी आ गए।
हैरानी की बात थी, उन्होंने इसबार किसी के साथ सेल्फी नहीं ली। लग रहा था जैसे दिमाग में मेरी ही तरह रिवीजन कर रहे हों। पानी का ग्लास मैंने पहले ही हटवा लिया जिससे 'दोस्ती बनी रहे बस' की गुंजाइश खत्म हो जाए। कैमरा ऑन हुआ तो मोईजी थोड़ा कंफर्टेबल हुए, लेकिन पहला ही सवाल ट्रिकी था। राममंदिर पर उन्होंने पहले से तैयार आंसर धड़ाधड़ सुना दिया। कांग्रेस के वकीलों का अड़ंगा, कोर्ट की प्रक्रिया और न्याय का भरोसा जैसे शब्दों में पहला सवाल टला और 'इसमें रिक्स था, बाकी पिच्चर में देख लेना' सर्जिकल स्ट्राइक का आंसर दिया गया। पाकिस्तान धीरे-धीरे सुधरेगा और सबरीमाला वाली 'महिला' जज ने फैसला दिया, ये बोलकर अगले दो सवाल भी खिसकाए गए।
पांचवें जवाब में हिंट था जो आज समझ में आया। उंगलियां घुमाते हुए मोईजी बोले, 'देखिए प्राणेश जी, जिनके पास कोई विजन नहीं है, वही आरोप लगाते हैं। इस वक़्त बहुत से लोग नीतियों विरोध करते हैं, इसके मूल में जाना होगा। अगर आपको मैं इंटरव्यू न देता तो आप ही सवाल करते, मैंने आपको सवर्ण होते हुए भी चुना। आप कहते कि मैं सवालों के जवाब नहीं देता। जो विरोध करता है, वह भी हिस्सेदार होगा तो विरोध खत्म हो जाएगा।' जवाब की लास्ट लाइन में बहुत बड़ा हिंट था। फ़ॉर एग्जाम्पल, अगर मैं खुद घूस ले लूं तो नैतिक रूप से इसका विरोध नहीं कर पाऊंगा। नीरव-माल्या मुझे 20-50 करोड़ दे दें तो उन्हें वापस नहीं ला पाऊंगा, और मुझे भी आरक्षण मिले तो आरक्षण का विरोध नहीं कर पाऊंगा।
मुद्दा ये है भी नहीं, मुद्दा ये है कि मोईजी का विजन वो कारण खत्म करने का था, जिसकी वजह से सवर्ण 'ये बिक गई है गोरमिंट' वाले मोड में थे। अब गोरमिंट और मोईजी से अच्छा कोई नहीं क्योंकि आरक्षण की वजह से गमछा ओढ़ के नारे लगाने वाले चमन चंदू आईएएस नहीं बन पा रहे थे, सकल सडेलू की शादी नहीं हो रही थी और नंदू भड़कीले डीयू में एडमीशन नहीं ले पा रहे थे। अब सब हो जाएगा, 'अच्छे दिन आएंगे, सब आरक्षण पाएंगे और मंदिर वहीं.. ये छोड़िए।' अब समझ आया कि हमको इंटरव्यू देकर हमारी निष्पक्षता की ऐसी-तैसी कर दी गई और आरक्षण का लॉलीपॉप पकड़े सवर्णों की तरह हम खुद को टीवी पर देखके खुश हुए जा रहे थे।
'चलो हमारे बच्चों का भला कर दिए मोईजी' किसी अंडरपेड पत्तरकार की ये लाइन सुनकर बस अभी-अभी माथा पीटा और सर खुजाते हुए पांचवां सवाल याद करने लगा। वो सवाल था, 'मोईजी आपको क्या लगता है, 2019 का चुनाव आखिर किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?'