वक़्त की रेत पर नाम लिखने चला हूँ,
जो बन न सका अब वो दिखने चला हूँ।
उजाले को दीपक भी मैंने जलाये,
अँधेरी गली में भटकने चला हूँ।
जो बन न सका अब वो दिखने चला हूँ।
उजाले को दीपक भी मैंने जलाये,
अँधेरी गली में भटकने चला हूँ।
मिला जो भी मैंने गले से लगाया,
सहारा दिया और समय से मिलाया।
जाने कहाँ रह गयी थी कमी पर,
हर किसी ने मुझे ही बुरा क्यों बनाया।
यूं तो लड़ता हूँ खुद से नयी जंग मैं भी,
भरता हूँ जीवन में कुछ रंग मैं भी,
चाहत बना हूँ कई दिलों की मैं,
पर कुछ हैं जिन्हें चाहता आज मैं भी।
भरता हूँ जीवन में कुछ रंग मैं भी,
चाहत बना हूँ कई दिलों की मैं,
पर कुछ हैं जिन्हें चाहता आज मैं भी।
सुनहरा हो कल ये इबादत नहीं है,
मिलें सारी खुशियाँ ये चाहत नहीं है।
सुनाता हूँ अपनी कहानी जो सबको,
कहते कल जो सुना था ये किस्सा वही है।
कल को उलझा हुआ अब सुलझने लगा हूँ,
वक़्त की आग में यूं सुलगने लगा हूँ।
टूटा हुआ अब मैं जुड़ने चला हूँ,
शायद मैं खुद को समझने लगा हूँ।
वक़्त की आग में यूं सुलगने लगा हूँ।
टूटा हुआ अब मैं जुड़ने चला हूँ,
शायद मैं खुद को समझने लगा हूँ।
-: प्राणेश तिवारी
Wah bhai aasha krta hu aur aaagey badhooo......
ReplyDeleteshaandar jabrjast zindabad!!
ReplyDeleteBHAVPURN KAVYA CHOTEY BHAI.../....
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