UPSC टॉपर टीना डाबी का नाम सुर्ख़ियों में कई दिन तक छाया रहा और हम भी उनकी इस कामयाबी पर उन्हें सलाम करते हैं. लेकिन इसी बीच आज सामने आया एक नाम 'अंकित श्रीवास्तव', एक नाम जो दावा कर रहा है कि उसे टीना डाबी से 35 नंबर ज्यादा मिले हैं. केवल आरक्षण व्यवस्था के चलते 'कट-ऑफ' ज्यादा होने की वजह से अंकित इस परीक्षा में असफल करार दिए गए हैं.
अंकित ने यह बात अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखी. उन्होंने बस यूं ही टीना की मार्कशीट देखी तो सन्न रह गए. अंकित ने अपनी पोस्ट में लिखा,

मेरे आश्चर्य की इंतहा नहीं रही जब मैंने देखा की मैडम का CSP 2015 स्कोर है 96.66 और मेरा अर्थात अंकित श्रीवास्तव का स्कोर है 103.5, इतना ही नहीं पेपर 2 में मेरे 127.5 अंक है और माननीय टॉपर महोदया के 98.7 (दोनों मार्कशीट्स का स्क्रीनशॉट इस पोस्ट में है, और उसे UPSC की वेबसाइट पे रोल नंबर्स की सहायता से जांचा भी जा सकता है) अर्थात मैंने CSP -2015 में टॉपर महोदया से 35 अंक ज्यादा प्राप्त किये हैं।आरक्षण-व्यवस्था की महिमा कितनी चमत्कारिक है, सच्चे अर्थों में आज इसका एहसास हुआ। याद रहे की ऐसा भी बिलकुल नहीं है की टीना डाबी समाज के वंचित तबके से सम्बन्ध रखती हैं। उनके माता और पिता दोनों इंजीनियरिंग सेवा के अधिकारी रहे हैं और वह भी हम जैसो की तरह एक खाते-पीते संपन्न मध्यम-वर्ग से आती हैं? ऐसे में बड़ा प्रश्न यह उठता है की क्या इसी प्रकार के सामजिक न्याय की अवधारणा पर इस देश का निर्माण हुआ है? मैं अपनी संभावनाओं में जरुरी सुधार कर आईएस बन सकूँ या ना बन सकूँ, पर क्या हमारी दिशा और दशा सही है? क्या हमारी वर्तमान चयन-प्रक्रियाएं आज सर्वश्रेष्ठ को चुनने की क्षमता रखती हैं? टीना डाबी सिर्फ एक उदाहरण हैं,
उन्होंने जो किया है उसके लिए उनके प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाये वो निःसन्देह कम है, यहाँ उद्देश उन्हें या उनकी उपलब्धियों को कमतर आंकना कतई नहीं है, और न ही अपनी कुंठा तुष्ट करना है । परन्तु एक प्रश्न यह भी निसंदेह उतना ही महत्वपूर्ण है की मेरे जैसे सैकड़ो निहायत ही क्षमतावान और समर्पित नौजवान, जो अपनी बड़ी-2 नौकरियां ठुकरा कर अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिनों के रोज 12-14 घंटे सिर्फ पढाई करते हैं, वो आज किसके द्वारा किये गए अन्यायों का दंश झेल रहे हैं? क्या आरक्षण व्यवस्था का पुनरावलोकन करने और उसे वर्तमान जातिगत व्यवस्था से अलग कर ‘वास्तविक आर्थिक और सामजिक पिछड़ेपन’ से सम्बद्ध करने का राजनैतिक साहस किसी में नहीं है? दुःखद, हमसे ज्यादा इस देश के लिए दुर्भागयपूर्ण है ये स्थिति!"
अंकित का यह पोस्ट अपने आप में कई सवाल छोड़ता है. क्या अंकित सिर्फ इस लिए असफल रहा क्योंकि वह सामान्य वर्ग का है. क्या योग्यता से ज्यादा उसकी जाति से फर्क पड़ता है. अंकित ने साफ़ लिखा कि मुझे टॉपर कहलाने का शौक नहीं, लेकिन उसकी मेहनत को यह कहकर नज़रंदाज़ कर देना कि वह सामान्य है, कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता. अपनी अगली पोस्ट में अंकित ने इस बात का साफ़ शब्दों में ज़िक्र किया, साथ ही अपनी जन्मतिथि बताकर अपनी मार्कशीट पब्लिक भी कर दी.
इसके बाद से ही अंकित का पहला पोस्ट फेसबुक ने 'कम्युनिटी स्टैण्डर्ड के अगेंस्ट' कहकर हटा दिया. हो सकता है इसके पीछे कोई दबाव रहा हो. शायद किसी को अभी से यह डर सताने लगा हो कि कहीं इस पोस्ट की वजह से शांत बैठे एक बड़े वर्ग के खून में उबाल न आ जाए.

नोट- मैंने खुद अंकित और टीना डाबी की मार्कशीट्स देखी और कम्पेयर की हैं. और ये बिलकुल सही हैं.
आप भी चाहें तो आधिकारिक साईट पर जाकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं.