Sunday, 8 May 2016

'माँ तू कहाँ है!'

सोचा आज माँ पर कविता लिखूं,
लिखने बैठा तो समझ न आया क्या लिखूं!

लिखूं उसके प्यार का गीत,
या त्याग की कहानी लिखूं।
हर खुशी है जिसकी मुझसे,
क्या उसकी ज़ुबानी लिखूं।

लिखूं ममता का आँचल,
गोद में मिलने वाला चैन लिखूं।
बीमार और बेचैन था जब,
तब क्यों भीगे उसके नैन लिखूं।

लिखूं वक़्त जो मेरे नाम किया,
जो दिया मुझे वो प्यार लिखूं।
लिखूं उसने चाहा मुझे कितना,
या फिर इसका आभार लिखूं।

क्यों लिखूं उस रिश्ते की कहानी चंद शब्दों में,
जिसे बयां करने को सारी ज़िन्दगी अधूरी है।
जिससे हूँ जिसका हूँ और जिसके लिए हूँ मैं,
कोई और नहीं एक 'माँ' वो मेरी है।

और हां!
हमारे इस जहाँ में, एक उनका भी जहाँ है,
जिन मासूमों को नहीं उनकी माँ का पता है।
हम आज शान से कहते हैं, मेरे पास माँ है!
वो बच्चे आज भी पूछ रहे,'माँ! तू कहाँ है?'

-: प्राणेश तिवारी (स्वरचित)

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