सुबह-सुबह ठंडी हवा और हरियाली में टहलना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. शहरों में कंक्रीट की इमारतों की भेंट चढ़ती हरियाली को बचाने और लोगों को स्वस्थ रखने के लिए पार्क बनाए गए. सुबह शाम यहां टहलने आने वालों की संख्या सैकड़ों में है. हर दूसरा मधुमेह का मरीज डाक्टर की सलाह मानकर कार से ही सही लेकिन पार्क तक ज़रूर आता है. लेकिन जितना मधु इन पार्कों में है, उसके दर्शन मात्र से ही आप बीमार हो सकते हैं.
मुद्दा जरा अटपटा लग सकता है, लेकिन न आप और न ही मैं इससे अंजान हैं. मेरा एक साथी मजाकिया लहजे में अक्सर कहता है दुनिया में प्यार कहीं है, तो पार्कों में! वैसे तो घूमने का आनंद गाँवों में कहीं भी मिल जाता है, लेकिन उस रोज ऑफिस के असाइनमेंट के चलते एक पार्क के भ्रमण का सुअवसर मिला. हम गन्दगी और अव्यवस्था से जड़ी खबर ढूंढने निकले थे, प्रवेश करते ही साथी का जुमला याद आ गया.
पार्क में ओर प्रेम की धारा बह रही थी. कहीं पेड़ की छांव तो कहीं हरी घास पर प्रेम-पुजारी अपनी साधना में लीन थे. दीन-दुनिया से बेफिक्र उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आसपास कौन आ-जा रहा है. लग रहा था जैसे बिना कैमरे और डायरेक्टर के ढेर सारी रोमांटिक फिल्मों की शूटिंग एकसाथ चल रही है. शायद ये हास्यास्पद लगे लेकिन अब मैं खुदको असुरक्षित महसूस कर रहा था. नज़रें झुकाकर किसी अपराधी की तरह मैं पार्क में प्रवेश कर रहा था क्योंकि इस प्रेम रस से ज़्यादा ज़रूरी मेरे लिए अव्यवस्था और गन्दगी की खबर निकालना था.
आगे बढ़कर देखा तो पार्क में सफाई का आलम यह था कि रात को पेड़ों से गिरे पत्ते भी भोर अंधेरे साफ़ कर दिए गए थे. झाड़ू से बने लकीरों के निशान ज़मीन पर अब भी नज़र आ रहे थे. घास काटने की मशीनें आवाज़ करके कर्तव्यनिष्ठा दिखा रही थीं और खबर जैसा यहां कुछ भी न था. शायद यह मेरी ही गलती थी कि मैंने शहर का एक बड़ा और नामी पार्क चुन लिया था. फिर भी यहां आसपास के माहौल से ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी गलत गली में आ गया हूँ.
देर न करते हुए खाली हाथ मैं वहां से लौटने को हुआ तभी माथा ठनका. प्रेम साधना में लीन युगलों की तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं रुपी गार्ड नदारद थे. गेट को छोड़कर पूरी पार्क में किसी सुरक्षा गार्ड की परछाईं तक नहीं दिखी तो मैंने तफ्तीश करने का मन बनाया. पता चला दिन और रात दोनों में 24-24 गार्ड तैनात होने चाहिए, लेकिन शायद वो भी प्रेमलीला में बाधा पहुंचाकर पाप के भागी नहीं बनना चाहते.
लगभग हर पार्क में ऐसे दृश्य अब आम हो चलें हैं. इसका परिणाम यह है कि कोई भी सपरिवार पार्क में पिकनिक मनाने नहीं आना चाहता. मैं भी ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगा. इससे तो बेहतर है कि आप पूरे परिवार के साथ सेंसरबोर्ड से 'ए' सर्टीफिकेट पाने वाली 'उड़ता पंजाब' फिल्म देख लें. आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता फैलाना अगर कहीं से भी तर्कसंगत लगता हो तो मैं इच्छुक जन को बहस के लिए आमंत्रित करना चाहूंगा.
पार्क से निकलने से पहले बाहर बैठी महिला गार्ड से बातचीत में अलग ही पहलू सामने आया. परिवारों के पार्क में न आने के सवाल पर हंसते हुए बोलीं,'ये तो कपल-पार्क है न बाबू.' स्पष्ट जवाब देते हुए उन्होंने कहा 'मैं तो साफ़ बोलती हूँ. अगर ये प्रेमी पार्क न आएं तो पार्क कल ही बंद हो जाएगा. सुबह टहलने आने वालों ने मासिक पास बनवा रखे हैं, ऐसे लोग भी सैकड़ों में हैं. दिन भर पार्क में जमे रहने वाले जोड़ों की वजह से रोजाना हज़ारों टिकट बिकते हैं. उल्टी-सीधी हरकत करते पकड़े जाने लड़के-लड़कियां अपने दोस्तों को मम्मी-पापा बनाकर उनसे बात करवा देते हैं.'
पार्क में बढ़ती प्रेमियों की भीड़ पर भी उन्होंने सटीक वजह बताई. कहा,'बड़े-बड़े घर के लड़के-लड़कियां आते हैं. मॉल जाएंगे तो पिक्चर देखने और खाने में कम से कम हज़ार पांच सौ रूपए का खर्च आएगा. यहां सुबह नौ से रात नौ बजे तक खुले पार्क में पांच रुपए में काम बन जाता है. बहुत ज़्यादा तो सौ-दो सौ रुपये तक कुछ खा पी लेते हैं. स्कूल-कॉलेज यूनीफार्म में लड़के-लड़कियां रोजाना आते हैं और टोकने पर लड़ने पर उतारू हो जाते हैं.
यह लेख कई आधुनिक सोच वाले और मॉडर्निटी की पैरवी करने वालों को आपत्तिजनक लग सकता है. उनसे मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं, आधुनिकता और विस्तृत सोच का पार्क में किसी की गोद में सिर झुकाने से कोई वास्ता नहीं है. आधुनिकता आचरण और दिखावे से पहले मानसिकता में दिखनी चाहिए. बेशर्मी आधुनिकता का पर्यायवाची न कभी था और न हो सकता है.
एक उपाय जो समझ आता है वो है पार्कों में सीसीटीवी कैमरे लगवाना और सुरक्षा गार्ड्स की सक्रियता. पार्क जिस उद्देश्य से बनाए गए थे वह पूरे हों तो परिणाम सुखद होंगे. वरना रोज़ प्यार के नाम पर चल रही अश्लीलता और इससे जुड़े अपराधों को नज़रअंदाज़ करते हुए पार्कों का नाम 'तोता मैना स्थल' ही कर दिया जाना चाहिए. साथ ही क्लबों की तरह इनमें भी बोर्ड लगने चाहिए,'एंट्री ओनली फॉर कपल्स!'
(सभी तस्वीरें: गूगल से साभार)

पार्क में ओर प्रेम की धारा बह रही थी. कहीं पेड़ की छांव तो कहीं हरी घास पर प्रेम-पुजारी अपनी साधना में लीन थे. दीन-दुनिया से बेफिक्र उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आसपास कौन आ-जा रहा है. लग रहा था जैसे बिना कैमरे और डायरेक्टर के ढेर सारी रोमांटिक फिल्मों की शूटिंग एकसाथ चल रही है. शायद ये हास्यास्पद लगे लेकिन अब मैं खुदको असुरक्षित महसूस कर रहा था. नज़रें झुकाकर किसी अपराधी की तरह मैं पार्क में प्रवेश कर रहा था क्योंकि इस प्रेम रस से ज़्यादा ज़रूरी मेरे लिए अव्यवस्था और गन्दगी की खबर निकालना था.
आगे बढ़कर देखा तो पार्क में सफाई का आलम यह था कि रात को पेड़ों से गिरे पत्ते भी भोर अंधेरे साफ़ कर दिए गए थे. झाड़ू से बने लकीरों के निशान ज़मीन पर अब भी नज़र आ रहे थे. घास काटने की मशीनें आवाज़ करके कर्तव्यनिष्ठा दिखा रही थीं और खबर जैसा यहां कुछ भी न था. शायद यह मेरी ही गलती थी कि मैंने शहर का एक बड़ा और नामी पार्क चुन लिया था. फिर भी यहां आसपास के माहौल से ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी गलत गली में आ गया हूँ.

लगभग हर पार्क में ऐसे दृश्य अब आम हो चलें हैं. इसका परिणाम यह है कि कोई भी सपरिवार पार्क में पिकनिक मनाने नहीं आना चाहता. मैं भी ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगा. इससे तो बेहतर है कि आप पूरे परिवार के साथ सेंसरबोर्ड से 'ए' सर्टीफिकेट पाने वाली 'उड़ता पंजाब' फिल्म देख लें. आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता फैलाना अगर कहीं से भी तर्कसंगत लगता हो तो मैं इच्छुक जन को बहस के लिए आमंत्रित करना चाहूंगा.

पार्क में बढ़ती प्रेमियों की भीड़ पर भी उन्होंने सटीक वजह बताई. कहा,'बड़े-बड़े घर के लड़के-लड़कियां आते हैं. मॉल जाएंगे तो पिक्चर देखने और खाने में कम से कम हज़ार पांच सौ रूपए का खर्च आएगा. यहां सुबह नौ से रात नौ बजे तक खुले पार्क में पांच रुपए में काम बन जाता है. बहुत ज़्यादा तो सौ-दो सौ रुपये तक कुछ खा पी लेते हैं. स्कूल-कॉलेज यूनीफार्म में लड़के-लड़कियां रोजाना आते हैं और टोकने पर लड़ने पर उतारू हो जाते हैं.
यह लेख कई आधुनिक सोच वाले और मॉडर्निटी की पैरवी करने वालों को आपत्तिजनक लग सकता है. उनसे मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं, आधुनिकता और विस्तृत सोच का पार्क में किसी की गोद में सिर झुकाने से कोई वास्ता नहीं है. आधुनिकता आचरण और दिखावे से पहले मानसिकता में दिखनी चाहिए. बेशर्मी आधुनिकता का पर्यायवाची न कभी था और न हो सकता है.
एक उपाय जो समझ आता है वो है पार्कों में सीसीटीवी कैमरे लगवाना और सुरक्षा गार्ड्स की सक्रियता. पार्क जिस उद्देश्य से बनाए गए थे वह पूरे हों तो परिणाम सुखद होंगे. वरना रोज़ प्यार के नाम पर चल रही अश्लीलता और इससे जुड़े अपराधों को नज़रअंदाज़ करते हुए पार्कों का नाम 'तोता मैना स्थल' ही कर दिया जाना चाहिए. साथ ही क्लबों की तरह इनमें भी बोर्ड लगने चाहिए,'एंट्री ओनली फॉर कपल्स!'
(सभी तस्वीरें: गूगल से साभार)
बहुत ही अच्छा लेख जो हमारे सजाम को एक आइना दिखा रहा है. पाश्चात्य सभ्यता की लकीर पीट रहे आज के युवा भले की तुम्हारे शब्दों में प्रेम की धारा में बह रहे हैं लेकिन शायद यही प्रेम की धारा देश में फ़ैल रहे बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की वजह भी है
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