हमारे एक पुराने मित्र मिलते ही बिफर पड़े, 'कैसे पत्रकार हो भाई आप! स्विस बैंक में खाताधारकों के नाम पब्लिक हो गए और आपको खबर तक नहीं!' उनका दावा और गुस्सा देख एक पल को हम भी भौचक्के रह गए. इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे पता कैसे नहीं चला, मेरे तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछता, गुस्से में मुट्ठियां भींचते उन्होंने मेरी सारी आशंकाओं पर विराम लगा दिया. बोले,'व्हाट्सएप वगैरह चलाते हो कि नहीं? तुम मीडिया वालों ने तो पैसा खा रखा है, तुम क्यों सच बताओगे.'
हां, सही तो है. हम क्यों सच बताने लगे, सच बताने और हर छुपी बात सामने लाने का ठेका तो व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर आपके हितैषियों ने ले रखा है. जो कभी स्विस बैंक के खाताधारकों में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को शामिल कर देते हैं तो कभी हेलन की फोटोशॉप तस्वीर को कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की जवानी से जोड़ देते हैं. इतना ही नहीं ये हितैषी ही आपको ऐसा मैसेज भेज सकते हैं, जिसे तीन ग्रुप्स में फॉरवर्ड करते ही आपका फ़ोन 100 प्रतिशत चार्ज हो जायेगा, या फिर आपको 5 जीबी डेटा फ्री मिलेगा. हमारे बस में तो इतना सब नहीं है.
बेशक आप समझ चुके होंगे मेरा इशारा किस तरफ है! यूं तो सोशल मीडिया संचार क्षेत्र में क्रान्ति लेकर आया है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसका उपयोग अफवाहों को फैलाने और झूठा प्रचार करने के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. यही नहीं, इससे जुड़े कुछ उदहारण शायद आपको बेवकूफाना लगें लेकिन करोड़ों लोग जानबूझकर ऐसी बेवकूफियां करते हैं और दूसरों को भी अपने कुटुंब में शामिल करना चाहते हैं.
सिर्फ एक मैसेज और मेरे दोस्तों ने कुरकुरे खाना काम कर दिया, फ्रूटी पीनी छोड़ दी. इस मैसेज में कहा गया था कि कुरकुरे में प्लास्टिक है, सबूत पेश हुआ कि आप चाहें तो इसे जलकर देख लें, ये प्लास्टिक की तरह जलता है. और तो और कहा गया कि फ्रूटी की फैक्ट्री में कुछ एचआईवी पॉजिटिव वर्कर्स ने अपना खून फ्रूटी में मिला दिया है, तो सावधान आपको भी एचआईवी हो सकता है. सच तो यह है कि कुछ भी खाने-पीने से एड्स का वायरस नहीं फैलता, कुरकुरे भी प्लास्टिक नहीं स्टार्च की वजह से अलग तरह से जलता दिखता है. इन ख़बरों का सच से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन बड़े तबके ने इन पर विश्वास कर लिया. सिर्फ निरक्षर और पिछड़ा वर्ग ही नहीं, मॉडर्न सोसाइटी के पढ़े लिखे लोगों ने भी इस पर यकीन किया.
एक और बड़ी खबर व्हाट्सएप, फेसबुक सोशल मीडिया के ज़रिये तेजी से फैली, इसमें कहा गया कि राष्ट्रगान 'जन गण मन' को यूनेस्को ने बेस्ट राष्ट्रगान का खिताब दिया है. खबर फैलने की देरी थी कि बधाइयों का दौर शुरू हो गया. भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने ट्विटर पर बधाई भी दे डाली. बाद में यह खबर भी झूठ निकली. कुछ इसी तरह एक तस्वीर शेयर की जाने लगी जिसे नासा द्वारा दीवाली पर्व के वक़्त ली गई भारत की तस्वीर बताया जाने लगा. लोग धड़ाधड़ शेयर करते गए और मूर्ख बनते गए. जबकि इसका सच तक कोई वास्ता नहीं था. ये तस्वीर भी फोटोशॉप से बनाई गई थी.
ऐसे एक नहीं ढेरों उदाहरण मिलेंगे, मैसेज भी ऐसे जो कोई सपने में नहीं सोच सकता. यह फोटो शेयर करें, इसमें बनी मक्खी उड़ जाएगी. कमेंट में 'उठ' टाइप करें और तस्वीर में रेलवे ट्रैक पर लेटी लड़की खड़ी हो जाएगी. बेशक यह बेवकूफाना लगे लेकिन हैरानी होती है जब ऐसी तस्वीरों पर हज़ारों कमेंट और शेयर्स मूर्खता करने वालों की गवाही देते नज़र आते हैं. हमारी यह बेवकूफी कई बार किसी की छवि को धूमिल कर देती है, गलत खबर को लोगों तक पहुंचा देती है. सांप्रदायिक दंगों के रूप में भी ऐसी अफवाहों के दुष्परिणाम सामने आते रहे हैं.
बड़ा सवाल है कि हम ऐसा क्यों करते हैं? दोस्त को घंटों समझाने के बाद जब इस बात का जवाब पूछा तो बोले शेयर करने में हमारा क्या जाता है! किसको फुर्सत है जो हर मैसेज की की जांच और तफ्तीश करे.
सच है, हमारा क्या जाता है! जाता कुछ भी न हो जनाब, तब भी आप उन मूर्खों की लिस्ट में जगह बना लेते हैं जिनमें तर्कशक्ति का अभाव है. क्या सही है और क्या गलत, क्या सच है और क्या झूठ, बिना पूरी बात जाने उसे दूसरों के हवाले करना शायद आपकी नज़र में गलत न हो, लेकिन खतरनाक ज़रूर है.
अगर आप भी ऐसे मैसेज और तस्वीरों पर पल में यकीन कर इन्हें फॉरवर्ड और शेयर करने वालों में से हैं तो सोशल मीडिया आपके विचारों और सोचने-समझने की प्रभावित कर रहा है. ज़रूरी है कि अभी संभल जाएं, वरना कल को स्विस बैंक के खाताधारकों की लिस्ट में अगर आपका नाम भी वायरल होने लगे तो मुझसे न कहिएगा. आपका एक मैसेज न फॉरवर्ड करना बड़ा कदम होगा, जो झूठ शायद किसी बड़े दंगे या घटना की वजह बन सकता था, सिर्फ आपकी वजह से ख़त्म हो जाएगा.
बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं लगता सच जानने में! अपने मैसेज को ले जाएं और गूगल सर्च के हवाले कर दें, थोड़ी ही देर में उसका सच सामने होगा. अगर आपके पास इतना वक़्त नहीं है, तो बुरा न मानिए लेकिन उसे दूसरों तक पहुंचाने हक़ नहीं. अब हर कोई आप जितना स्मार्ट नहीं होता न, जो सच और झूठ के भेद को समझ ले. बेहतर होगा अगर अब आप सोशल मीडिया को यूज़ करें न कि वह आपको इस्तेमाल कर रहा हो.

हां, सही तो है. हम क्यों सच बताने लगे, सच बताने और हर छुपी बात सामने लाने का ठेका तो व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर आपके हितैषियों ने ले रखा है. जो कभी स्विस बैंक के खाताधारकों में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को शामिल कर देते हैं तो कभी हेलन की फोटोशॉप तस्वीर को कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की जवानी से जोड़ देते हैं. इतना ही नहीं ये हितैषी ही आपको ऐसा मैसेज भेज सकते हैं, जिसे तीन ग्रुप्स में फॉरवर्ड करते ही आपका फ़ोन 100 प्रतिशत चार्ज हो जायेगा, या फिर आपको 5 जीबी डेटा फ्री मिलेगा. हमारे बस में तो इतना सब नहीं है.
बेशक आप समझ चुके होंगे मेरा इशारा किस तरफ है! यूं तो सोशल मीडिया संचार क्षेत्र में क्रान्ति लेकर आया है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसका उपयोग अफवाहों को फैलाने और झूठा प्रचार करने के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. यही नहीं, इससे जुड़े कुछ उदहारण शायद आपको बेवकूफाना लगें लेकिन करोड़ों लोग जानबूझकर ऐसी बेवकूफियां करते हैं और दूसरों को भी अपने कुटुंब में शामिल करना चाहते हैं.
सिर्फ एक मैसेज और मेरे दोस्तों ने कुरकुरे खाना काम कर दिया, फ्रूटी पीनी छोड़ दी. इस मैसेज में कहा गया था कि कुरकुरे में प्लास्टिक है, सबूत पेश हुआ कि आप चाहें तो इसे जलकर देख लें, ये प्लास्टिक की तरह जलता है. और तो और कहा गया कि फ्रूटी की फैक्ट्री में कुछ एचआईवी पॉजिटिव वर्कर्स ने अपना खून फ्रूटी में मिला दिया है, तो सावधान आपको भी एचआईवी हो सकता है. सच तो यह है कि कुछ भी खाने-पीने से एड्स का वायरस नहीं फैलता, कुरकुरे भी प्लास्टिक नहीं स्टार्च की वजह से अलग तरह से जलता दिखता है. इन ख़बरों का सच से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन बड़े तबके ने इन पर विश्वास कर लिया. सिर्फ निरक्षर और पिछड़ा वर्ग ही नहीं, मॉडर्न सोसाइटी के पढ़े लिखे लोगों ने भी इस पर यकीन किया.
एक और बड़ी खबर व्हाट्सएप, फेसबुक सोशल मीडिया के ज़रिये तेजी से फैली, इसमें कहा गया कि राष्ट्रगान 'जन गण मन' को यूनेस्को ने बेस्ट राष्ट्रगान का खिताब दिया है. खबर फैलने की देरी थी कि बधाइयों का दौर शुरू हो गया. भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने ट्विटर पर बधाई भी दे डाली. बाद में यह खबर भी झूठ निकली. कुछ इसी तरह एक तस्वीर शेयर की जाने लगी जिसे नासा द्वारा दीवाली पर्व के वक़्त ली गई भारत की तस्वीर बताया जाने लगा. लोग धड़ाधड़ शेयर करते गए और मूर्ख बनते गए. जबकि इसका सच तक कोई वास्ता नहीं था. ये तस्वीर भी फोटोशॉप से बनाई गई थी.
ऐसे एक नहीं ढेरों उदाहरण मिलेंगे, मैसेज भी ऐसे जो कोई सपने में नहीं सोच सकता. यह फोटो शेयर करें, इसमें बनी मक्खी उड़ जाएगी. कमेंट में 'उठ' टाइप करें और तस्वीर में रेलवे ट्रैक पर लेटी लड़की खड़ी हो जाएगी. बेशक यह बेवकूफाना लगे लेकिन हैरानी होती है जब ऐसी तस्वीरों पर हज़ारों कमेंट और शेयर्स मूर्खता करने वालों की गवाही देते नज़र आते हैं. हमारी यह बेवकूफी कई बार किसी की छवि को धूमिल कर देती है, गलत खबर को लोगों तक पहुंचा देती है. सांप्रदायिक दंगों के रूप में भी ऐसी अफवाहों के दुष्परिणाम सामने आते रहे हैं.
बड़ा सवाल है कि हम ऐसा क्यों करते हैं? दोस्त को घंटों समझाने के बाद जब इस बात का जवाब पूछा तो बोले शेयर करने में हमारा क्या जाता है! किसको फुर्सत है जो हर मैसेज की की जांच और तफ्तीश करे.
सच है, हमारा क्या जाता है! जाता कुछ भी न हो जनाब, तब भी आप उन मूर्खों की लिस्ट में जगह बना लेते हैं जिनमें तर्कशक्ति का अभाव है. क्या सही है और क्या गलत, क्या सच है और क्या झूठ, बिना पूरी बात जाने उसे दूसरों के हवाले करना शायद आपकी नज़र में गलत न हो, लेकिन खतरनाक ज़रूर है.
अगर आप भी ऐसे मैसेज और तस्वीरों पर पल में यकीन कर इन्हें फॉरवर्ड और शेयर करने वालों में से हैं तो सोशल मीडिया आपके विचारों और सोचने-समझने की प्रभावित कर रहा है. ज़रूरी है कि अभी संभल जाएं, वरना कल को स्विस बैंक के खाताधारकों की लिस्ट में अगर आपका नाम भी वायरल होने लगे तो मुझसे न कहिएगा. आपका एक मैसेज न फॉरवर्ड करना बड़ा कदम होगा, जो झूठ शायद किसी बड़े दंगे या घटना की वजह बन सकता था, सिर्फ आपकी वजह से ख़त्म हो जाएगा.
बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं लगता सच जानने में! अपने मैसेज को ले जाएं और गूगल सर्च के हवाले कर दें, थोड़ी ही देर में उसका सच सामने होगा. अगर आपके पास इतना वक़्त नहीं है, तो बुरा न मानिए लेकिन उसे दूसरों तक पहुंचाने हक़ नहीं. अब हर कोई आप जितना स्मार्ट नहीं होता न, जो सच और झूठ के भेद को समझ ले. बेहतर होगा अगर अब आप सोशल मीडिया को यूज़ करें न कि वह आपको इस्तेमाल कर रहा हो.
Well done Pranesh
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