क्या कभी खोए हो तुम,
भीड़ में अपनों के बीच!
कभी रोये हो तुम,
या कभी टूटकर सोए हो तुम।
भीड़ में अपनों के बीच!
कभी रोये हो तुम,
या कभी टूटकर सोए हो तुम।
शायद नहीं, पर मैं रोता हूं...
इसलिए नहीं कि खोना नहीं चाहता।
इसलिए नहीं, कि बिखरे मोती पिरोना नहीं चाहता।
इसलिए, क्योंकि हर बार ये माला टूट जाती है।
बिखर जाते हैं मोती फिर से, आस छूट जाती है।
इसलिए नहीं कि खोना नहीं चाहता।
इसलिए नहीं, कि बिखरे मोती पिरोना नहीं चाहता।
इसलिए, क्योंकि हर बार ये माला टूट जाती है।
बिखर जाते हैं मोती फिर से, आस छूट जाती है।
चुनौतियां पसंद हैं मुझे, मिलती ही जाती हैं।
एक पल मुस्कराकर, ज़िन्दगी फिर रूठ जाती है।
खुद को साबित करते करते, बहुत थक जाता हूं।
भर आती हैं आंखें जब, मुस्कराकर छुपाता हूं।
एक पल मुस्कराकर, ज़िन्दगी फिर रूठ जाती है।
खुद को साबित करते करते, बहुत थक जाता हूं।
भर आती हैं आंखें जब, मुस्कराकर छुपाता हूं।
जी रहा हूं ज़िन्दगी, या फिर ये मुझे जी रही है।
यादों के परदे का वो छेद, उम्मीदें सी रही हैं।
सच्ची और झूठी बातें अब तक एक सी रही हैं।
आंखों का नहीं पता, आंसू क्यों पी रही हैं!
सच्ची और झूठी बातें अब तक एक सी रही हैं।
आंखों का नहीं पता, आंसू क्यों पी रही हैं!
सच और झूठ के इस फेर से अब निकल रहा हूं,
भारी हैं कदम, बढ़ते नहीं, फिर भी चल रहा हूं।
कभी-कभी ऐसा लगता है खुद को ही छल रहा हूं,
या फिर क्या सच में, 'मैं बदल रहा हूं।'
-: प्राणेश तिवारी
भारी हैं कदम, बढ़ते नहीं, फिर भी चल रहा हूं।
कभी-कभी ऐसा लगता है खुद को ही छल रहा हूं,
या फिर क्या सच में, 'मैं बदल रहा हूं।'
-: प्राणेश तिवारी