Saturday, 30 April 2016

अधूरा सच, एक वाकया जिसने मुझे एहसास कराया- आँखें हमेशा सच नहीं देखतीं!

आँखें हमेशा सच देखें ये ज़रूरी नहीं! फिल्मों में ऐसा दिखाना ज़रा आसान होता है, आम जिंदगी में ऐसा होगा एक बार को कोई नहीं मानता. रोज़ हमें जाने कितनी ख़बरें देखने को मिलती हैं, और हम एक पल में उनपर यकीन कर लेते हैं. एक वाकया हुआ मेरे साथ और मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि किसी मामले में अपनी राय बनाने में हम ज़रा भी वक़्त नहीं लगाते.

हुआ यूं कि 25 अप्रैल, सोमवार शाम मैं लखनऊ से वापस घर लौट रहा था. मैंने सड़क के किनारे अंगौछा बिछाकर बैठे एक बुजुर्ग को देखा. मुझे लगा शायद कोई भिखारी होगा. मैं घर पहुंचा और थोड़ी देर बाद किसी काम से फिर बाहर निकलना पड़ा. वो बुजुर्ग अब भी वहीँ बैठा था. तभी एक लगभग 40 साल का व्यक्ति वहां आया और उसने बुजुर्ग को पीटना शुरू कर दिया, बेहद गुस्से में दिख रहे उस व्यक्ति ने बुजुर्ग से भीख में मिले पैसे दिखाने को कहा और उसे भगाने लगा.


ये देखकर मुझे बेहद गुस्सा आया. एक बार को मन हुआ कि इसका वीडियो बनाऊं और पुलिस में दे दूं. अंधेरा होने की वजह से ऐसा नहीं कर पाया, लेकिन मुझसे और नहीं सहा गया. आखिर मैंने उससे पूंछा कि वो ऐसा क्यों कर रहा है. बेहद गुस्से में मैंने उसे ऐसा करने से मना किया.

अगले ही पल उसका रोल बदल गया, उस निर्दयी से दिख रहे आदमी की आँखें भर आई और उसने कहा, 'बेटा! ये मेरे बड़े भाई हैं. जाने कब एक रेल हादसे में इनके दोनों पैर कट गए. आठ साल तक ये घर वापस नहीं लौटे. अचानक एक दिन देवां में हाजी वारिस अली शाह की दरगाह  पर गए मेरे गाँव के कुछ लोगों ने इन्हें भीख मांगते हुए देखा. जून 2015 में मैं भी इन्हें ढूँढ़ने दो बार वहां गया और इन्हें घर वापस लाया.

तब से ये मेरे साथ रह रहे हैं, जो हम खाते-पहनते हैं वही इन्हें भी देते हैं. इन्हें घर में बोरियत होती है. तो हमने इन्हें बाहर कुर्सी पर बिठाना शुरू किया, लेकिन ये अपनी आदत से मज़बूर हैं. आज दोपहर में मेरी आँख लग गई और मौक़ा पाते ही ये घर से बाहर निकल आए, भीख मांगने बैठ गए. ऐसे में बेटा आप ही बताओ, मुझपर क्या बीतेगी। सब देखकर यही कहेंगे कि बिचारे को कुछ खाने को नहीं देता, परेशान करता हूँ.

जो इंसान कुछ देर पहले तक क्रूर और निर्दयी लग रहा था, अब आँखों में आंसू लिए बेचारा लग रहा था. मैं कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था. वह खुद ये मान रहा था कि बड़े भाई को डांटना या उनपर हाथ उठाना उसे तकलीफ देता है, लेकिन जब भाई ऐसी हरकत करे तो गुस्सा आना वाजिब है.

अब मैं शर्मिन्दा था, मैंने बिना पूरी बात समझे उसे बुरा समझ लिया था. आँखों ने जो देखा उसे सच मान बैठा, क्योंकि भरोसा है इन आँखों पर, जो नज़रों के सामने हो वो झूठ कैसे हो सकता है. आज हमारी आँखें रोज ऐसे अधूरे सच देखती हैं  और उनपर एक पल में यकीन कर लेती हैं. किसको इतनी फुर्सत है कि हर घटना पर रिसर्च करे.

मैं सोच रहा था अगर मैं उस आदमी से बात ही न करता और उसका वीडियो बनाकर शेयर कर देता तो चंद घंटों में उसे सैकड़ों लोग भला-बुरा कह रहे होते, कमेंट्स की बाढ़ आ जाती. जो इंसान सच में अच्छा है उसे बुरा बनने में वक़्त नहीं लगता. रोज हम जाने कितने वायरल वीडियोज़ और फोटोज पर आँखें मूँद कर भरोसा करते हैं और किसी इंसान को बुरा या हीरो मान लेते हैं.

ये घटना मैंने आपसब के साथ सिर्फ इसलिए शेयर की, जिससे अगली बार आप किसी भी फोटो या तस्वीर को देखकर अपनी राय न बनाएं. समझने की कोशिश कीजिये, आपको कितनी  आसानी से बेवकूफ बनाया जा रहा है. तो अगली बार अगर आपको कोई ब्रेकिंग न्यूज़ उड़ती भैंस की दिखे तो सिर्फ वीडियो पर भरोसा न करें, क्योंकि आँखों देखा हमेशा सच हो ये ज़रूरी नहीं!

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