Monday, 7 January 2019

मोईजी का इंटरव्यू: व्यंग्य

         हिंट तो मोईजी ने इंटरव्यू में दे दिया था, मैं ही समझ नहीं पाया। आज फिर उनसे किए सवाल और उनके जवाब याद आ गए। तीन महीने पहले पीएमओ ने जो सवाल मंगवाए थे, उनमें से पांच ही वापस आए। कहा गया, मोईजी बस इत्ता ही तैयार कर पाए हैं। तब पता चला कि राउल बाबा की चिल्लमचिल्ली की वजह से मोईजी की मेमोरी वीक हो गई है। ऐसा न होता तो मोईजी 'पुडुचेरी को वणक्कम' थोड़ी बोलते, 'हेहेहे व्यापारी' वाली लाइन के आगे गोल-गोल घुमा दिए होते। बहुत दिन से विदेश नहीं गए हैं बेचारे, और तो और टिरम्प चचा ने 26 जनवरी को इंडिया आने से इनकार कर दिया है।

मोईजी मुझे इंटरव्यू देंगे ये जानने के बाद मैं उसी स्ट्रेस में आ गया था, जिसमें तीन राज्यों में हारने के बाद हमारे मोईजी थे। अब वो सदन में सत्र शुरू होने से पहले प्रेस कांफ्रेंस किए दे रहे थे, खुद आईटी सेल परेशान थी कि मोईजी विरोधियों को मीम मटीरियल क्यों दे रहे हैं। राममंदिर का नाटक अलग चल रहा था, ऊपर से शिवसेना भी उत्पात मचाए हुए थी। कुल मिलाकर सिचुएशन बीजेपी के कंट्रोल से बाहर थी और कांग्रेस के 70 साल वाली पंचलाइन भी पब्लिक पर असर नहीं कर रही थी। ऐसे में मोईजी मुझे इंटरव्यू देंगे, ये बात समझ नहीं आ रही थी। पांचों सवाल एक पर्ची में लिए मैं समझ नहीं पा रहा था, 'मोईजी ने मुझे क्यों चुना?'

मुझे लगा पक्का मोईजी भयानक स्ट्रेस में हैं, वरना न तो मैंने मोईजी के फ्रेम वाली फ़ोटो अबतक लगाई थी और न ही 'मोई ही विकल्प' जैसा कुछ पोस्ट किया था। यही सोचते-सोचते सुबह हो गई। मैं 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर के बाद, पतंजलि के स्वदेशी ट्राउजर-कुर्ते में सजकर स्टूडियो आ गया। थोड़ी देर में मोईजी आते ही होंगे, किसी ने कहा। मेरी सवालों वाली पर्ची कहीं खो गई थी। पांचों सवाल याद ज़रूर थे लेकिन दिमाग में सीक्वेंस महागठबंधन के समीकरण की तरह गड़बड़ा रहा था। मैं रामविलास की तरह कंफ्यूज था, इंटरव्यू लूं या न लूं। फिर सोचा कि दिखेंगे मोईजी ही, मुझे तो बचे हुई फुटेज में बस टीवी पर आना है। मूंछों पर ताव दिया कि तभी हलचल बढ़ी और मोईजी आ गए।

हैरानी की बात थी, उन्होंने इसबार किसी के साथ सेल्फी नहीं ली। लग रहा था जैसे दिमाग में मेरी ही तरह रिवीजन कर रहे हों। पानी का ग्लास मैंने पहले ही हटवा लिया जिससे 'दोस्ती बनी रहे बस' की गुंजाइश खत्म हो जाए। कैमरा ऑन हुआ तो मोईजी थोड़ा कंफर्टेबल हुए, लेकिन पहला ही सवाल ट्रिकी था। राममंदिर पर उन्होंने पहले से तैयार आंसर धड़ाधड़ सुना दिया। कांग्रेस के वकीलों का अड़ंगा, कोर्ट की प्रक्रिया और न्याय का भरोसा जैसे शब्दों में पहला सवाल टला और 'इसमें रिक्स था, बाकी पिच्चर में देख लेना' सर्जिकल स्ट्राइक का आंसर दिया गया। पाकिस्तान धीरे-धीरे सुधरेगा और सबरीमाला वाली 'महिला' जज ने फैसला दिया, ये बोलकर अगले दो सवाल भी खिसकाए गए।

पांचवें जवाब में हिंट था जो आज समझ में आया। उंगलियां घुमाते हुए मोईजी बोले, 'देखिए प्राणेश जी, जिनके पास कोई विजन नहीं है, वही आरोप लगाते हैं। इस वक़्त बहुत से लोग नीतियों विरोध करते हैं, इसके मूल में जाना होगा। अगर आपको मैं इंटरव्यू न देता तो आप ही सवाल करते, मैंने आपको सवर्ण होते हुए भी चुना। आप कहते कि मैं सवालों के जवाब नहीं देता। जो विरोध करता है, वह भी हिस्सेदार होगा तो विरोध खत्म हो जाएगा।' जवाब की लास्ट लाइन में बहुत बड़ा हिंट था। फ़ॉर एग्जाम्पल, अगर मैं खुद घूस ले लूं तो नैतिक रूप से इसका विरोध नहीं कर पाऊंगा। नीरव-माल्या मुझे 20-50 करोड़ दे दें तो उन्हें वापस नहीं ला पाऊंगा, और मुझे भी आरक्षण मिले तो आरक्षण का विरोध नहीं कर पाऊंगा।

मुद्दा ये है भी नहीं, मुद्दा ये है कि मोईजी का विजन वो कारण खत्म करने का था, जिसकी वजह से सवर्ण 'ये बिक गई है गोरमिंट' वाले मोड में थे। अब गोरमिंट और मोईजी से अच्छा कोई नहीं क्योंकि आरक्षण की वजह से गमछा ओढ़ के नारे लगाने वाले चमन चंदू आईएएस नहीं बन पा रहे थे, सकल सडेलू की शादी नहीं हो रही थी और नंदू भड़कीले डीयू में एडमीशन नहीं ले पा रहे थे। अब सब हो जाएगा, 'अच्छे दिन आएंगे, सब आरक्षण पाएंगे और मंदिर वहीं.. ये छोड़िए।' अब समझ आया कि हमको इंटरव्यू देकर हमारी निष्पक्षता की ऐसी-तैसी कर दी गई और आरक्षण का लॉलीपॉप पकड़े सवर्णों की तरह हम खुद को टीवी पर देखके खुश हुए जा रहे थे।

'चलो हमारे बच्चों का भला कर दिए मोईजी' किसी अंडरपेड पत्तरकार की ये लाइन सुनकर बस अभी-अभी माथा पीटा और सर खुजाते हुए पांचवां सवाल याद करने लगा। वो सवाल था, 'मोईजी आपको क्या लगता है, 2019 का चुनाव आखिर किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?'

Saturday, 5 May 2018

करीम चचा

  करीम चाचा

राम राम पंडित जी, अस्सलाम वालेकुम भाईजान,
हमारे मंदिर से आरती, तुम्हारे मस्जिद से अजान..
हमारे के हाथ में गीता, तुम्हारे हाथ में कुरान,
तुम्हारा अल्लाह हु अकबर, हमारा जय श्री राम।

हम हिंदुस्तान के हिंदू, तुम मुल्क-ए-हिन्द के मुसलमान,
क्या वाकई? यही, बस इतनी सी है हमारी पहचान?
इससे तो जानवर का बच्चा भी हमें बेहतर जान जाता है,
अरे दो आंखें, दो पैर, एक नाक, दो कान..
कमबख्त ये तो है इंसान...

हां हां, यही है वो इंसान जो पहले खुद को हिन्दू या मुसलमान बताता है,
फिर सामने वाले को हिन्दू मुसलमान बनाता है,
इसके बाद खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को बुरा बताता है।
भूलकर की इंसान को बुरा मजहब नहीं, इंसान बनाता है।

दरअसल मैं एक कहानी लेकर आया था,
और शुरू कविता हो गई..
जैसे इंसान प्यार सिखाता धर्म और मजहब लेकर आया था,
और शुरू नफरत हो गई..

तो जो कहानी लाया था, वही सुनाऊंगा..

मोहल्ले से बाहर उस गली में सारे बड़े-बड़े मकान थे,
और उनकी शान में बट्टा बनती थी करीम चाचा की झोपड़ी,
यहां लोगों में प्यार था, बेशुमार था..
हर दिन नई सुबह.. नया त्योहार था..
करीम चाचा भी इसका हिस्सा थे और उन्हें मिलता हर छोटे-बड़े का प्यार था..

चचा के पास एक खजाना था, उनकी झोपड़ी के सामने अमरूद और आम के केवल दो पेड़ों वाला बाग था..
इस बाग में बच्चे खेलने आया करते थे..
और कसीदाकारी में माहिर करीम चाचा..
उनमें अपना बचपन ढूंढते.. मुस्कराया करते थे..

सब ठीक चल रहा था लेकिन एक रोज टीवी के रास्ते पहुंच गई यहां भी नफरत की आग,
कपड़े सिलने से लेकर बटन टांकने वाले करीम अब किसको आते याद,
बच्चों पर भी पाबंदियों का ऐसा लगा साया,
कई दिन बीत गए, उस बगीचे में.. उन पेड़ों पर कोई खेलने नहीं आया..

उस शाम दबे पांव झोपड़ी में मोहल्ले का.. मेरे ही जैसा चिंटू घुसा और उदास बैठे करीम से बिछड़े बच्चे सा लिपट गया..
अगले ही पल उसने पूछा.. चाचा आप बुरे हो क्या? आपने बीफ खाया है?
भारी आंखों से फूट पड़ा वो.. मानो आंखों से ढुलकते आंसू कह रहे हों..
मैं.. बुरा कब हुआ.. ये कैसा तूफान आया..
बोला बच्चे.. मैं बुरा नहीं हूं.. मैंने तो परसों से कुछ नहीं खाया..

ये बताओ.. दो दिन से कोई बच्चा खेलने क्यों नहीं आया?
क्योंकि सब कहते हैं आप मुसलमान हो.. आपने बीफ खाया है..
ये बीफ क्या होता है बेटा.. और क्या होता है मुसलमान?
तुम बच्चे ही तो मेरे अपने हो.. तुमहीं तो हो मेरा नूर मेरी जान..

चिंटू वापस घर लौट आया और सीधा अपने पापा से टकराया..
पापा.. आप क्यों नहीं जाने देते मुझे? करीम चाचा बुरे हैं.. ये झूठ हम बच्चों को क्यों सिखाया?
चुप रहो तुम.. मुसलमानों से दूर रहो!
नहीं हैं वो मुसलमान.. पापा, उन्होंने बीफ नहीं खाया..
आप बुरे हो-आपने झूठ बोला.. आपने मुझे उनसे नफरत करना सिखाया..

हैरान थे पापा.. और अगले दिन पूरा मोहल्ला हैरान था..
कि बच्चों को सही-गलत किसने समझा दिया?
करीम चाचा बुरे नहीं हैं, ये एहसास बच्चों ने बड़ों को दिला दिया..
आज किसी घर से टीवी के चीखते पर्दे की आवाज नहीं आ रही है..
बच्चे खेल रहे हैं बगीचे में.. करीम चाचा की हंसी और बच्चों की शरारत दूर से मुझे नज़र आ रही है..

इस वक़्त यहां न कोई हिन्दू-न मुसलमान है..
न किसी के हाथ गीता, न कुरान है..

तो हम भी बच्चा क्यों बन जाते,
मुझे लगता है आसान होगा दिल से बच्चा बन जाना..
क्योंकि अब मुश्किल हो चुका है,
इंसान को.. हिन्दू या मुसलमान नहीं..
इंसान कह पाना!

Sunday, 1 April 2018

अच्छे दिन आ गए मितरों... (व्यंग्य)

सुबह उठा तो पेड़ों पर चिड़िया 'अच्छे दिन आ गए' गा रही थीं। पैर जमीन पर पड़े तो मखमल का कालीन बिछा हुआ था, देसी टॉइलट की जगह 'स्वच्छ भारत' लिखा विदेशी कमोड लगा था जिसका जेट ऑन होते ही 'मित्रों' की आवाज़ कर रहा था। मेरी अलमारी में भगवा रंग के स्टाइलिश कपड़े जमे हुए थे और उनमें से सच्चे हिन्दू वाले चंदन की खुशबू आ रही थी। पहनकर बाहर निकला तो गड्ढा-मुक्त सड़कों पर कांग्रेस नेता पोंछा लगा रहे थे, वहीं कोने में पप्पू मंच से खाली मैदान में चुटकुले सुना रहे थे। राम मंदिर की पताका दूर लहराती नज़र आ रही थी और बैंक 'घर-घर मोदी' का नारा लगाने वालों को 15 लाख पहुंचा रहे थे।

इतनी देर में माथा घनचक्कर हुआ ही था कि देखा, मोदीनामी सूट पहने एक पत्रकार कैमरे के सामने मोदी महात्म्य सुना रहे थे। बता रहे थे किस तरह विजय माल्या ने तिहाड़ जेल में शादी रचाई है, नीरव और ललित मोदी सहित पूरी भगोड़ी फैमिली बारात लेकर आई है। आगे देखा तो मस्जिदों के गुम्बद भगवा पुते हुए थे, उनपर झंडे लगे थे और लाउडस्पीकर पर मोदी जी के मन की बात सुनाई दे रही थी। पता चला, भारत हिन्दू राष्ट्र बन चुका है.. बाकी धर्म वाले थोड़े पाकिस्तान, थोड़े बांग्लादेश, थोड़े कनाडा, थोड़े नार्थ-ईस्ट और थोड़े यूएस भेज दिए गए। बाकी बचे लोगों को बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया है, कुछ मार्गदर्शन मंडल में भी जमे हैं।

अमीर-गरीब सब एक से दिख रहे हैं, वही भगवा कपड़े पहने सेम 'नोटबन्दी' टाइप इस्माइल कर रहे थे। कहते हैं, सीमा सुरक्षा अब मुद्दा ही नहीं है क्योंकि आरएसएस की सेना बॉर्डर पर मोदी जी के भाषण चलाकर बैठ गई है। पाकिस्तानी कान के साथ-साथ बंदूक-तोप की नलियों में भी रुई ठूंसकर बैठे हैं। जेब से फोन निकालकर देखा तो फेसबुक पर लोकतंत्र खतरे में वाली पोस्ट भी 'लोकतंत्र' की तरह गायब थीं, क्रांतिकारी पत्रकारों के पैरोडी अकाउंट तक ब्लॉक हो चुके थे और जेएनयू की जगह मैप में अब 'देशभक्त निर्माण कार्यशाला' दिखा रहा था। हां! जिओ की ओर से मोदी जी की 12 मिस कॉल और 26 मैसेज पड़े थे। मैसेज में लिखा था, 'अच्छे दिन आ गए हैं मित्रों, इसे अपनी कॉलर टोन बनाने के लिए 420420 पर मिस कॉल दें, या सच्चे हिन्दू इस मैसेज को फॉरवर्ड करें!'

बड़ी मुश्किल से एक भाई साहब को पकड़कर विपक्ष कहां है का सवाल किया तो पता चला, 'विपक्ष के बचे खुचे घिसे पिटे 13 नेता महागठबंधन करके मोदी जी को हराने का मंत्र ढूंढने हिमालय पर चले गए हैं। बाकी साउथ इंडिया वाले कॉमरेड टाइप नेता किताबों के साथ खुद को बंद कर लाइब्रेरी में बैठे हैं। खैर, कांग्रेस को आरोपों की सफाई करते रहने और 'नेहरू की गलती है' सुनने के लिए रोक लिया गया है। देश में केवल सच्चे हिन्दू बचे हैं और बाकी सिकुलरों को 'कट्टर बनाओ मिशन' के तहत अमित शाह के पास सुधारगृह में भेज दिया गया है।'

मोदी जी कहां हैं वैसे? सवाल सुनकर हमसे खफा होते हुए भक्त बोला, 'हम सबमें मोदी हैं भाई! घर-घर मोदी, हर-हर मोदी.. अब तो अच्छे दिन आ गए, तुम भी तो मोदीनाम जपोगे? तुम चाहोगे तभी तो मेक इन इंडिया में हर कोई सच्चा हिन्दू बनेगा, वरना एक अकेला मोदी क्या-क्या करेगा?'

भाई मगर वो ऑरिजिनल वाले मोदी जी कहां.. बीच में ही टोककर भक्त बोला.. 'वो नया देश खोजकर आए थे न परसों, ट्रम्प के साथ उसका भूमिपूजन करने गए हैं.. मंदिर वहीं बनाएंगे!' और जो ये वाला मंदिर बना है वो? मैंने पूछा! 'तो आ रहे हैं न शाम को किम जोंग के साथ.. आरती मोदी जी ही तो कराएंगे! और हां, शर्त लगा लो, प्रसाद खाने राहुल बाबा भी आएंगे! हर हर मोदी..'

Saturday, 24 February 2018

नथिंग इमोशनल

कहने को बहुत कुछ है,
जताने बताने को है उससे भी ज़्यादा...
हैं केवल इमोशन्स दोनों ओर,
लेकिन #nothing_emotional का है वादा..

मिलना एक अजनबी से करना दोस्ती बस यूं ही,
समझाते हुए बस इतना कि मैं इमोशनल नहीं हूं।
समझना उलझनों को, सुलझाना अनबूझी पहेलियां,
फिर एक रोज जताना, मैं आज हूं-बीता कल नहीं हूं..

दूसरों के झगड़े निपटाते-सुलझाते, खुद घंटों बैठना साथ,
बिना बात की बात और बस यूं ही हाथों में हाथ।
सुनो! ये खत्म नहीं होना चाहिए, पूछा क्या तो बोली,
यही जो प्यारा सा रिश्ता है, ये जो बॉन्ड चल रहा है साथ।

बातों से चंद कदम साथ चलने और आने तक पास,
क्या समझ सके कब कौन हुआ किसके लिए खास।
लेकिन एक भूखा रहा, तो मर गई दूसरे की भूख-प्यास।
दो नहीं-चार आंखें छलकीं, जब कोई भी हुआ उदास।

इस तरह पास आना और एक दोस्त-एक साथी पाना,
आसान नहीं था, पर लगा जैसे जंगल में हाथी पाना।
कभी कंधे पर तो कभी गोद में सिर रखकर सो जाना,
सबको शक होने लगा, इस तरह हमने एकदूजे को माना।

हमारी दुनिया अलग थी, जहां थी चाय और कोल्ड कॉफी।
बेवजह फिरने की आदत, थी शाम वाली डांट और माफी।
यादें बटोरते और बांटते एहसास, रूठना मनाना रहा जारी।
सुबह-शाम साथ होकर भी लगा, कुछ बातें रह गईं बाकी।

बाकी रह गईं बातें और वक़्त आ गया लेने का विदा।
तेज नदी के एक किनारे तू, तो दूसरे किनारे जैसे मैं था।
ज़िद अब भी थी मिलने की, किनारों को मिलाता रहा।
तैरना न सीखा, डूबने की चाह में तेरे पास आता रहा।

हमारी यारी फिर जीती, और तुझे अपने साथ ले आया।
खत्म कर दिए दो किनारे, देख तुझे पक्के घाट ले आया।
मुमकिन तो नहीं होता दो दोस्तों का यूं साथ रहना,
लेकिन हम मिले क्योंकि तुझे यहां मेरा विश्वास ले आया।

रेत की टीलों से लेकर गीले पैरों और हवाई जहाज तक,
जीते रहे हैं एक अलग ज़िन्दगी साथ हम तो आज तक।
गर्म रसगुल्लों की मिठास से लेकर रेत की ठंडक तक,
और गंगा में तैरते दियों से लेकर बनारस के घाट तक।

यहां यादें बिखरी हैं, एहसास के मोतियों से टूटे हैं पल।
हमारा वजूद ही क्या है, यही बातें रहेंगी आज-कल।
हां पता है, चाहते हैं, हर दूरी-हर मुश्किल बस जाए टल...
फिर दोहराता हूं मेरी दोस्त.. #nothing_emotional