Tuesday, 15 March 2016

अरे! माल्या भागे नहीं हैं भाई!

आजकल मीडिया को पता नहीं कैसा अजीब सा शौक चढ़ गया है, बेवजह इतने इज़्ज़तदार और भरोसेमंद समाजसेवी विजय माल्या जी के पीछे पड़ गई है। माल्या भाग गए, देश छोड़ के भाग गए, बड़ा हो हल्ला है। वो कोई चोर थोड़ी हैं जो भागने की ज़रुरत पड़ेगी। समाजसेवी हैं भाई! लोगों के जीवन में रस भरा है, आसमान तक में उड़ाया है सबको। एहसान मानिए।

जाते जाते भी मीडिया को कितना बड़ा मुद्दा दे के गए हैं माल्या जी! सुबह की खबर, देश छोड़कर कैसे भाग गए माल्या। दोपहर की न्यूज़, आखिर क्या था माल्या का एस्केप प्लान। शाम के समाचार, माल्या की अकूत दौलत का रहस्य। रात की बहस, सीबीआई क्यों नहीं दे रही जवाब! सबसे बड़ा सवाल कब आएंगे माल्या? बड़ी ख़ुशी होती है देखकर, माल्या जी विदेश क्या गए मीडिया से लेकर आम जन तक सब बावले हो गए। अरे आ जाएंगे भाई! सब्र रखिये।
जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा दुःख पहुँचाया वो ये कि सब उन्हें भगोड़ा समझ बैठे हैं। अपने घर ही तो गए हैं वो, इंडिया तो कभी कभी मौज मौज में आ जाया करते हैं। राजा बाबू फिल्म का 'परदेसी परदेसी जाना नहीं' गाना उनसे ज़्यादा किसे सूट करता है। यहाँ घूमने आये होंगे, पैसा लिया होगा जेब-खर्च के लिए, हो गया होगा ख़त्म... 9000 करोड़ ही तो है। जैसे यहाँ लिया था, वहां से डॉलर में ले आएंगे। चुका देंगे पैसा।
इस एक साल में हम वाकई बहुत असहनशील हो गए हैं, रत्ती भर भी भरोसा नहीं रहा माल्या जी पर! अरे ट्वीट किये हैं, भागा नहीं हूँ। सही वक़्त पर आऊंगा। भरोसा रखिये। जिस भरोसे के साथ 9000 करोड़ दिए थे उसे कुछ दिन और बनाए रखिये। मीडिया की बकबक पर ध्यान मत दीजिये। कान बंद करिये ध्यान कीजिये। महसूस कीजिये कि आप किंगफिशर के हवाई ज़हाज़ की सीट पर बैठे हैं और उड़ान बड़ी शानदार है। माल्या जी पर भरोसा न होता तो ऐसे प्लेन में बैठते क्या आप?

माल्या जी ने सच में आम जन का दिल खुश कर दिया। जो बैंक वाले 20-50 हज़ार का लोन देने के लिए बैंक में दस चक्कर लगवाते हैं और ईएमआई देर से भरने पर परेशान करते हैं, उनकी तो जान अटका दी माल्या ने। रातों की नींद उड़ा दी उनकी। अब बैंक उनके इंतज़ार में ऐसा बैठे हैं जैसे चांदनी रात में पेड़ की शाख पर बैठा बड़ी आँखों वाला उल्लू! सिर्फ लोन नहीं, हम सबका बदला लिया है माल्या जी ने। भई वाह!

सब कहते हैं एक तरफ कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, दूसरी तरफ माल्या देश से भाग गए। तौबा तौबा! अब माल्या जी भी आत्महत्या करें क्या? 9000 करोड़ का कर्ज कौन सा बहुत ज़्यादा होता है। ज़्यादा तो वो 20-30 हज़ार होता है जो किसान बैंक से लेते हैं और खेत में गाड़ आते हैं, फिर आत्महत्या करते हैं और मुआवजा मिलता है वो अलग। जो सरकार 20-30 हज़ार के कर्ज़दार किसान को मुआवज़ा 5 लाख देती है, वो 9000 करोड़ के कर्ज़दार माल्या जी को मुआवज़ा देने का रिस्क उठाने की हालात में भी नहीं है। फांसी लगाना, आत्महत्या करना इन्हीं एक हड्डी के किसानों को सूट करता है, कोई भी ऐसा फंदा नहीं बना जो माल्या जी का भार उठा सके। तो फिर! फालतू सवाल बिलकुल नहीं, किसान आत्महत्या करते हैं इसलिए न्यूज़ में हैं। माल्या जी को क्या ज़रुरत ये सब करने की, वो तो छींक दें तो भी न्यूज़ बन जाती है।

लेकिन माल्या जी मेरी आपसे एक विनती है। अब देर न लगाइये। आप तो साक्षात कुबेर देव का अवतार हैं, थोड़ी कृपा दृष्टि इधर बरसा दीजिये और सबका मुंह धन दौलत से बंद कर दीजिये। इससे पहले कि आपका मार्केट डाउन हो और न्यूज़ चैनलों की टीआरपी गिरे, आकर क्लाइमेक्स कर ही दीजिये। तब तक तो हम सबको समझा ही रहे हैं, अरे! माल्या जी भागे नहीं हैं भाई! लोन लेने गए हैं...

Tuesday, 8 March 2016

अबला नारी नहीं सब पर भारी है आज की महिला!

        मैं आज की नारी हूँ। जिस नारी का स्वरूप इस पुरुषप्रधान समाज ने हमेशा से ही कमजोर व बेबस बनाते हुए हमें अबला नाम दिया था, आज वही समाज हमारी सफलता को चुनौती मानकर घबराया हुआ है। हम पर हमेशा बन्दिशें लगती रहीं, सीमाओं और मर्यादा के दायरे में हमें हमेशा से ही बांधा गया। इसके बावजूद हम बढ़ते रहे, एहसास दिलाते रहे कि आप अकेले नहीं हैं। हमने आपको कभी नीचा नहीं दिखाया, चुनौती नहीं दी। हमें तो सिर्फ अपना हक़ चाहिए, आप हमें रोकने की लाख कोशिशें कर लें, अपने अधिकार हम लेकर रहेंगे।

हमारी कहानी हमेशा दुख भरे शब्दों में बयां की जाती है। हमारी छवि समाज में पीड़ित, दुखी और बेचारी महिला वाली बनाकर प्रस्तुत की जाती है। सच तो ये है, अब मैं अबला नहीं रही। मुझे पता है कि मुझे अपने अधिकारों की लड़ाई किस तरह लड़नी है और कैसे कंधे से कंधा मिलाकर चलना है। हमें आगे बढ़ता देख पहले रीति रिवाजों और रूढ़ियों की ज़ंजीरों से बांधने की कोशिश की गई और जब ये ज़ंजीरें भी हमें बांध न सकीं तो सामाजिक मर्यादाओं और सीमाओं का हवाला दिया गया। हम पर एक के बाद एक दबाव डाले गए। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस दबाव ने हमें कमजोर बनाने के बजाय और मजबूत कर दिया। बढ़ते सामाजिक दबाव के साथ हमारी शख्सियत दिनों दिन निखरती गई।

आज मैं ऑफिस और घर दोनों की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाने में सक्षम हूँ, एक अच्छी माँ हूँ, जिम्मेदार पत्नी हूँ और कुशल गृहिणी भी हूँ। मुझे नहीं अच्छा लगता जब महिलाओं को बेचारी या कमजोर कहते हुए लेख लिखे जाते हैं। अपने हक़ की लड़ाई लड़ने को तैयार अब मैं मजबूर या कमजोर नहीं। मैं किसी की गुलाम नहीं।

देश में महिला साक्षरता दर बढ़ रही है क्योंकि अब तक सिर्फ सपने देखने वाली महिलाएं हर सपना पूरा करने का मन बना चुकी है। हमारे सपने अब एक अच्छे जीवनसाथी और अच्छे ससुराल तक ही सीमित नहीं रहे, अब मैं एयरहोस्टेस बन आसमान में उड़ने के सपने देखती हूँ तो कल्पना चावला की तरह अन्तरिक्ष में तैरने के! इतना ही नहीं देश के विकास में हमारा प्रतिशत पुरुषों से कुछ कम नहीं है। आम धारणा से उलट भारत में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत अपेक्षाकृत ज़्यादा है। महिलाओं की भागीदारी कृषि में जहां 55% से 66% है वहीं डेयरी उद्योग में तो 94% हिस्सा महिलाओं का है। यही वजह है कि हमारे अधिकार भी बढ़े हैं।

मैं इस बात से इनकार नहीं करती कि आज भी हम कई समस्याओं और हमारे खिलाफ बढ़ते अपराधों से घिरे हैं, लेकिन इसका मतलब यह कहीं से नहीं कि हमें कमजोर समझने के भूल की जाए। यह सब ज़्यादा दिन तक नहीं चलने वाला, बहती हुई नदी और सुबह की धूप की तरह आगे बढ़ रही हूँ मैं। हमारा आगे बढ़ना जो समाज के लिए खुशी की बात है उसे लेकर पुरुष वर्ग घबराया और बौखलाया सा दिख रहा है। यूं तो आज की नारी को किसी की स्वीकृति की ज़रूरत नहीं, लेकिन बेहतर होगा अगर समाज हमारी पूर्णता को स्वीकार करे, अबला नारी वाले दबे कुचले नहीं बल्कि अष्टभुजी माँ दुर्गा वाले स्वरूप को स्वीकार करे। 

Thursday, 3 March 2016

पैरों में पहना जाता हूं!

कभी पैरों में पड़ा तो कभी घर के कोने में; मैं जूता हूं। जाने क्यों लोग मुझे इतना गिरा हुआ समझते हैं? कहते हैं तुम्हे तो मैं पैरों की जूती भी न बना । आखिर क्या ग़लती है मेरी? धूल ; पत्थर और कांटो से भरे रास्तों में तुम्हारे पैरों को बचाता हूं; खुद उफ भी नहीं करता जाने क्या क्या सह जाता हूं।
मुझे पाॅलिश करने का वक्त भी नहीं होता तुम्हारे पास। क्या तुम्हें पता है, बाहर बैठे बूट पाॅलिश वाले राजू को एक वक्त की रोटी मैं ही दिलाता हूं। इतना छोटा भी मत समझो मुझे, बड़े बड़े लोगों को फेंककर मारा जाता हूं। जब भी किसी के सिर पर पड़ता हूं, तो सिर्फ दर्द ही नहीं देता, उसका सम्मान भी ले जाता हूं।

कुछ भी हो जूता हूं, पैरों में पहना जाता हूं। दर दर की ठोकरें खाता हूं, घिसता हूं, फट जाता हूं और कबाड़ में फेंक दिया जाता हूं। जाने क्यों मैं गिरा हुआ समझा जाता हूं?
               लेकिन मेरी अहमियत तो उस दिन समझ आती है, जब मैं मन्दिर से चोरी हो जाता हूं। जब तुम नंगे पांव घर आते हो, तो मैं बहुत याद आता हूं। पर क्या करुं? जूता हूं पैरों में पहना जाता हूं।