मैं आज की नारी हूँ। जिस
नारी का स्वरूप इस पुरुषप्रधान समाज ने हमेशा से ही कमजोर व बेबस बनाते हुए हमें
अबला नाम दिया था, आज वही समाज हमारी सफलता को चुनौती मानकर घबराया हुआ
है। हम पर हमेशा बन्दिशें लगती रहीं, सीमाओं और मर्यादा के दायरे में हमें हमेशा से ही
बांधा गया। इसके बावजूद हम बढ़ते रहे, एहसास दिलाते रहे कि आप अकेले नहीं हैं। हमने आपको
कभी नीचा नहीं दिखाया, चुनौती नहीं दी। हमें तो सिर्फ अपना हक़ चाहिए, आप हमें
रोकने की लाख कोशिशें कर लें, अपने अधिकार हम लेकर रहेंगे।

आज मैं ऑफिस और घर दोनों की
ज़िम्मेदारी बखूबी निभाने में सक्षम हूँ, एक अच्छी माँ हूँ, जिम्मेदार पत्नी हूँ और
कुशल गृहिणी भी हूँ। मुझे नहीं अच्छा लगता जब महिलाओं को बेचारी या कमजोर कहते हुए
लेख लिखे जाते हैं। अपने हक़ की लड़ाई लड़ने को तैयार अब मैं मजबूर या कमजोर नहीं। मैं
किसी की गुलाम नहीं।
देश में महिला साक्षरता दर
बढ़ रही है क्योंकि अब तक सिर्फ सपने देखने वाली महिलाएं हर सपना पूरा करने का मन
बना चुकी है। हमारे सपने अब एक अच्छे जीवनसाथी और अच्छे ससुराल तक ही सीमित नहीं
रहे, अब मैं एयरहोस्टेस बन आसमान में उड़ने के सपने देखती हूँ तो
कल्पना चावला की तरह अन्तरिक्ष में तैरने के! इतना ही नहीं देश के विकास में हमारा
प्रतिशत पुरुषों से कुछ कम नहीं है। आम धारणा से उलट भारत में कामकाजी महिलाओं का
प्रतिशत अपेक्षाकृत ज़्यादा है। महिलाओं की भागीदारी कृषि में जहां 55% से 66% है
वहीं डेयरी उद्योग में तो 94% हिस्सा महिलाओं का है। यही वजह है कि हमारे अधिकार
भी बढ़े हैं।
मैं इस बात से इनकार नहीं
करती कि आज भी हम कई समस्याओं और हमारे खिलाफ बढ़ते अपराधों से घिरे हैं, लेकिन
इसका मतलब यह कहीं से नहीं कि हमें कमजोर समझने के भूल की जाए। यह सब ज़्यादा दिन
तक नहीं चलने वाला, बहती हुई नदी और सुबह की धूप की तरह आगे बढ़ रही हूँ
मैं। हमारा आगे बढ़ना जो समाज के
लिए खुशी की बात है उसे लेकर पुरुष वर्ग घबराया और बौखलाया सा दिख रहा है। यूं तो
आज की नारी को किसी की स्वीकृति की ज़रूरत नहीं, लेकिन बेहतर होगा अगर समाज
हमारी पूर्णता को स्वीकार करे, अबला नारी वाले दबे कुचले नहीं बल्कि अष्टभुजी माँ
दुर्गा वाले स्वरूप को स्वीकार करे।
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