माना मैं एक लड़की हूं,
पर हूं तो एक इंसान।
क्या फ़र्ज़ नहीं बनता है तुम्हारा,
कि करो मेरा सम्मान...
भोली हूं मैं, नादान हूं।
पर क्या यही मेरी गलती है!
मुझे बेजान समझना, और खेल जाना मुझसे।
इससे तुम्हें क्या ख़ुशी मिलती है?
दोस्त माना था तुम्हें, साथी माना था।
मुस्कान तुम्हारी सच्ची लगी, ऐसे पहचाना था।
पर क्या पता था, तुमने एक मुखौटा लगाया है।
अपने बेशर्म चेहरे को भोलेपन से छुपाया है।
मैंने नहीं दिया हक़ किसी को, जो चाहे जताने का।
मेरे बारे में कुछ भी बोलने का, मज़ाक बनाने का।
पर फिर भी ऐसा करते हो, तो शर्म करो इंसान हो।
शक होता है अब मुझको भी, तुम मानस की संतान हो।
तय करते हो मेरा चरित्र और नाम मुझे तुम देते हो।
एक पल में मन में अपने तुम, जो चीर मेरा हर लेते हो।
कायर हो, तुम हो बेईमान, काश ये खुद को समझाओ।
बेहतर होगा चुल्लू भर पानी में डूबो और मर जाओ।
: प्राणेश तिवारी