Friday, 23 September 2016

'मैं लड़की हूं'

माना मैं एक लड़की हूं,
पर हूं तो एक इंसान।
क्या फ़र्ज़ नहीं बनता है तुम्हारा,
कि करो मेरा सम्मान...

भोली हूं मैं, नादान हूं।
पर क्या यही मेरी गलती है!
मुझे बेजान समझना, और खेल जाना मुझसे।
इससे तुम्हें क्या ख़ुशी मिलती है?

दोस्त माना था तुम्हें, साथी माना था।
मुस्कान तुम्हारी सच्ची लगी, ऐसे पहचाना था।
पर क्या पता था, तुमने एक मुखौटा लगाया है।
अपने बेशर्म चेहरे को भोलेपन से छुपाया है।

मैंने नहीं दिया हक़ किसी को, जो चाहे जताने का।
मेरे बारे में कुछ भी बोलने का, मज़ाक बनाने का।
पर फिर भी ऐसा करते हो, तो शर्म करो इंसान हो।
शक होता है अब मुझको भी, तुम मानस की संतान हो।

तय करते हो मेरा चरित्र और नाम मुझे तुम देते हो।
एक पल में मन में अपने तुम, जो चीर मेरा हर लेते हो।
कायर हो, तुम हो बेईमान, काश ये खुद को समझाओ।
बेहतर होगा चुल्लू भर पानी में डूबो और मर जाओ।
                           
                                             : प्राणेश तिवारी

Thursday, 22 September 2016

'उधार'

शायद उधार अभी बाकी है,
नहीं पैसे नहीं! ना कोई सामान!
बाकी है तुम्हारे पास फिर भी बहुत कुछ मेरा।
याद रहेगी साथ बीती शाम, साथ हुआ सवेरा।

यूं तो मैं देता नहीं हर किसी को वक़्त अपना,
दिया तुम्हें, देखा तुम्हारे साथ, तुम्हारा सपना।
कर सकोगे वापस वो वक़्त मुझे!
कहां से लाओगे वो पल जो चले गए?

हां, सिर्फ मैं ही नहीं तुम भी तो कर्ज़दार हो।
ऐसा लगता है मुझपर कम तुमपर ज़्यादा उधार हो।
बांटे थे जो आंसू तुम्हारे, वापस नहीं मांगूगा।
पर खुद से वादा है, अब किसी का दर्द नहीं बांटूगा।

क्या वो तुम ही थे जो कंधे पर सिर झुकाकर रोए थे,
हां तुम ही तो थे जो मुझे दोस्त मान बेफिक्र सोए थे।
याद है न! कि ये भी भूल गए हम साथ थे।
अंधेरे रास्ते पर हाथों में हाथ थे, जज़्बात थे।

बहुत भोले हो मेरे दोस्त अच्छे से जानता हूं।
पर यह भी सच है कम लोगों को अपना मानता हूं।
तुम उन्हीं कम लोगों में से एक थे, क्योंकि नेक थे।
समझ जाना था पहले ही तुम्हें, पर समझे देर से।

हां! बुरा हूं मैं! जल्दी रूठ जाता हूं।
आवाज़ नहीं आती फिर भी टूट जाता हूं।
रोता हूं अकेले में पर सामने गुस्सा दिखाता हूं।
एक बार गया तो लौटकर वापस नहीं आता हूं।

-: प्राणेश तिवारी