Thursday, 22 September 2016

'उधार'

शायद उधार अभी बाकी है,
नहीं पैसे नहीं! ना कोई सामान!
बाकी है तुम्हारे पास फिर भी बहुत कुछ मेरा।
याद रहेगी साथ बीती शाम, साथ हुआ सवेरा।

यूं तो मैं देता नहीं हर किसी को वक़्त अपना,
दिया तुम्हें, देखा तुम्हारे साथ, तुम्हारा सपना।
कर सकोगे वापस वो वक़्त मुझे!
कहां से लाओगे वो पल जो चले गए?

हां, सिर्फ मैं ही नहीं तुम भी तो कर्ज़दार हो।
ऐसा लगता है मुझपर कम तुमपर ज़्यादा उधार हो।
बांटे थे जो आंसू तुम्हारे, वापस नहीं मांगूगा।
पर खुद से वादा है, अब किसी का दर्द नहीं बांटूगा।

क्या वो तुम ही थे जो कंधे पर सिर झुकाकर रोए थे,
हां तुम ही तो थे जो मुझे दोस्त मान बेफिक्र सोए थे।
याद है न! कि ये भी भूल गए हम साथ थे।
अंधेरे रास्ते पर हाथों में हाथ थे, जज़्बात थे।

बहुत भोले हो मेरे दोस्त अच्छे से जानता हूं।
पर यह भी सच है कम लोगों को अपना मानता हूं।
तुम उन्हीं कम लोगों में से एक थे, क्योंकि नेक थे।
समझ जाना था पहले ही तुम्हें, पर समझे देर से।

हां! बुरा हूं मैं! जल्दी रूठ जाता हूं।
आवाज़ नहीं आती फिर भी टूट जाता हूं।
रोता हूं अकेले में पर सामने गुस्सा दिखाता हूं।
एक बार गया तो लौटकर वापस नहीं आता हूं।

-: प्राणेश तिवारी

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