एक डिजिटल होता देश भारत, जहां सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध हो रहा है। डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिल रहा है और सरकार से जुड़ी सभी योजनाओं की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है। सोशल मीडिया के प्रयोग में भारत बेशक अव्वल नंबर पर हो लेकिन इसके बावजूद साइबरस्पेस में उसकी सहभागिता बहुत कम है और यह चिंता का विषय विषय है। डिजिटल होती सरकार और इंटरनेट पर आती जन योजनाओं के बीच यह समझना भी जरूरी है कि भारत में इंटरनेट सेवाएं किस हद तक मिल पा रही हैं। खासकर उन क्षेत्रों जहां मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो सकी है, वहां पर इंटरनेट का पहुंचना भारत के डिजिटल होने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। भारत का डिजिटल स्पेस या यूं कहें साइबरस्पेस बिल्कुल खाली दिख रहा है और ऐसे में सरकार या फिर देश के डिजिटल होने की बात बेमानी प्रतीत होती है। डिजिटल होने के प्रयास किए जाने चाहिए इसमें कुछ गलत नहीं लेकिन इसके लिए खुद को पहले तैयार करना होगा। भारत में अभी साइबरस्पेस का खाली होना यह दर्शाता है कि कहीं कुछ खामियां है जिन को दूर करना जरूरी है।
80 के दशक में भारत आए इंटरनेट को स्मार्ट फोन आने के बाद गति मिली। दुनियाभर के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में भारत का हिस्सा करीब 13.5 प्रतिशत है। भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है लेकिन इंटरनेट प्रोवाइडर्स बेहतर स्पीड उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। साथ ही सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच अभी मुश्किल है और इसमें अच्छा खासा वक्त लगना बाकी है। इंटरनेट का उपयोग करने के मामले में भारत दुनिया के कई देशों के मुकाबले निचले पायदान पर है, श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश भी भारत से काफी आगे हैं। डिजिटल इंडिया मिशन को चुनौती देते हुए आईसीटी एक्सेस, आईसीटी यूज और आईसीटी स्किल मामले में 166 देशों में इंडोनेशिया, श्रीलंका, सूडान, भूटान और केन्या जैसे देशों के बाद अब भारत का स्थान 129वां है। वहीँ फिक्स्ड ब्रॉडबैंड पहुंचाने के मामले में हम 125वें स्थान पर हैं। सौ लोगों की आबादी पर केवल 1.2 ब्रॉडबैंड कनेक्शन है जबकि विश्व का औसत सौ लोगों पर 9.4 का है। विकासशील देशों के वर्गीकरण में भारत में ब्रॉडबैंड की पहुंच 13 प्रतिशत घरों तक है और हम 75वें स्थान पर हैं। दरअसल भारत की आबादी ज्यादा है और इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों ने अपनी क्षमता से ज्यादा उपभोक्ताओं को कनेक्शन बांट दिए हैं। ऐसे में उपभोक्ता जब इंटरनेट का उपयोग करते हैं तो दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में 2 केबीपीएस की स्पीड भी नहीं मिल पाती। ऐसे में इंटरनेट का उपयोग बढ़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
साइबर स्पेस दरअसल इंटरनेट पर लोगों की मौजूद होने से बनी आभासी दुनिया है जहां लोग ना सिर्फ विचार साझा करते हैं, बल्कि अपनी समस्याओं का हल भी तलाशते हैं। सोशल मीडिया साइट्स जैसे फेसबुक और ट्विटर साइबर स्पेस का एक बड़ा हिस्सा हैं। फेसबुक भारत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट है इसका श्रेय स्मार्टफोन्स को भी जाता है। भारत में स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं में कुल 72 प्रतिशत इंटरनेट पर का प्रयोग करते हैं। हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते कि देश की लगभग आधी आबादी के पास स्मार्टफोन नहीं है। देश में लगभग 35% एक्टिव इंटरनेट यूजर हैं, यानी कि बाकी करीब 60% से ज्यादा लोग इंटरनेट पर लगातार एक्टिव नहीं रहते और यहीं साइबरस्पेस में खालीपन दिखता है।
80 के दशक में भारत आए इंटरनेट को स्मार्ट फोन आने के बाद गति मिली। दुनियाभर के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में भारत का हिस्सा करीब 13.5 प्रतिशत है। भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है लेकिन इंटरनेट प्रोवाइडर्स बेहतर स्पीड उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। साथ ही सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच अभी मुश्किल है और इसमें अच्छा खासा वक्त लगना बाकी है। इंटरनेट का उपयोग करने के मामले में भारत दुनिया के कई देशों के मुकाबले निचले पायदान पर है, श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश भी भारत से काफी आगे हैं। डिजिटल इंडिया मिशन को चुनौती देते हुए आईसीटी एक्सेस, आईसीटी यूज और आईसीटी स्किल मामले में 166 देशों में इंडोनेशिया, श्रीलंका, सूडान, भूटान और केन्या जैसे देशों के बाद अब भारत का स्थान 129वां है। वहीँ फिक्स्ड ब्रॉडबैंड पहुंचाने के मामले में हम 125वें स्थान पर हैं। सौ लोगों की आबादी पर केवल 1.2 ब्रॉडबैंड कनेक्शन है जबकि विश्व का औसत सौ लोगों पर 9.4 का है। विकासशील देशों के वर्गीकरण में भारत में ब्रॉडबैंड की पहुंच 13 प्रतिशत घरों तक है और हम 75वें स्थान पर हैं। दरअसल भारत की आबादी ज्यादा है और इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों ने अपनी क्षमता से ज्यादा उपभोक्ताओं को कनेक्शन बांट दिए हैं। ऐसे में उपभोक्ता जब इंटरनेट का उपयोग करते हैं तो दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में 2 केबीपीएस की स्पीड भी नहीं मिल पाती। ऐसे में इंटरनेट का उपयोग बढ़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
स्मार्ट फोन आने से जो इंटरनेट उपयोग बढ़ा है, वह सभी उपलब्ध सेवाएं उपलब्ध नहीं करा पाता। 80 फ़ीसदी से ज्यादा उपभोक्ताओं को इंटरनेट की स्पीड चार से 6 केबीपीएस से ज्यादा नहीं मिल पाने से इसका उपयोग नहीं होता या फिर कम रहा है। सारी दुनिया में जहां 4जी के बाद 5जी सर्विस शुरू हो गई है, वहीँ भारत में हम 2जी की 56 केबीपीएस की न्यूनतम स्पीड तक उपभोक्ताओं को उपलब्ध नहीं करा रहे हैं और 4जी सेवा का लाने का दावा कर रहे हैं।
भारत पर इंटरनेट के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए साइबर सुरक्षा का मुद्दा भी यक्षप्रश्न बनकर खड़ा है। हाल ही में लीजन के साइबर अटैक ने भारत में साइबर सुरक्षा की पोल खोल दी है। हमारे देश पर हो रहे इस साइबर अटैक के पीछे अनेक संस्थागत आर्थिक और सामाजिक कारण थे, लेकिन यह देश में इंटरनेट के प्रयोग पर सवाल खड़े करता है। इसके अलावा हमारी अतिगोपनीय सुरक्षाओं के लिए अपरिहार्य 'क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर' पर अभी तक काम नहीं हो सका है। सरकार के मेल सर्वर को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र देखता है और अंतर्गत आने वाले उपभोक्ताओं ने अब इसके टू फ़ैक्टर ऑथेंटिकेशन पर भरोसा करने से मना कर दिया है। इसके जरिए सरकार की गोपनीय सूचना तक पहुंचा जा सकता है। 2014 में एक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा संयोजक की नियुक्ति की गई थी परंतु राज्यों के साथ उनके संपर्क को बनाए रखने के लिए अब तक अधिकारी नियुक्त नहीं हुए। कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम में भी कर्मचारियों का टोटा है। इंटरफेस और ई-कॉमर्स वेबसाइट के मामले में भी भारत में इलेक्ट्रॉनिक फ्रॉड होता रहा है। साइबर सुरक्षा को लेकर सरकार की उदासीनता ने इसे बढ़ावा दिया है। विमुद्रीकरण के बाद सरकार उपकरणों और लेनदेन की सुरक्षा बढ़ाई देना ही डिजिटल लेनदेन की मजबूरी को सामने रख दी है। उल्टा रिजर्व बैंक ने 2000 रूपए तक के ट्रांजैक्शन के लिए 'टू मींस ऑफ आइडेंटिफिकेशन' यानी कि 2FA की जरूरत को भी हटा दिया है। ऐसे में बड़े लेन देन को भी हैक किया जा सकता है। डाटा हैकिंग का सिलसिला इंटरनेट उपभोक्ताओं के विश्वास को तोड़ सकता है।
इंटरनेट पर सामग्री की उपलब्धता पर भी सवाल उठाया जा सकता है। हमारे देश में 2.6 करोड़ रजिस्टर्ड लघु और मध्यम उद्योग है जिनमें करीब छह करोड़ को रोजगार मिला है। इनमें से 30 फ़ीसदी भी ऑनलाइन नहीं है। तकरीबन 33 लाख गैर सरकारी संस्थाएं यानी एनजीओ हैं। इनमें से 70 फ़ीसदी से भी ज्यादा ऐसी हैं जिनकी साइबर दुनिया में मौजूदगी नहीं है। विकासशील देश भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों पर बात करें तो हमारे यहां पंचायतों के लगभग 28 लाख 10 हज़ार निर्वाचन क्षेत्र हैं, विधानसभाओं के 4126 और लोकसभा के 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं केरल की पंचायत को छोड़ दें ज़्यादातर पंचायतों के पास अपनी कोई वेबसाइट नहीं है। बहुत सी सरकारी वेबसाइट्स पर भी स्थानीय भाषा में जानकारी उपलब्ध नहीं यह भी साइबरस्पेस के खाली होने की एक वजह है।
भारत का एक तबका डिजिटल होने को पूरी तरह तैयार है और हो भी रहा है जबकि दूसरा एक बड़ा तबका वंचित है और चाह कर भी साइबरस्पेस में जगह नहीं बना पा रहा है। इंटरनेट सेवा को बेहतर करने, मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेट प्रदाताओं पर लगाम लगाना और ट्राई द्वारा उनके लिए नियम और मानक तय करना भारत की साइबर स्पेस में उपस्थिति को मजबूत और ठोस रूप दे सकता है। भारत में सोशल मीडिया इंटरनेट का दूसरा नाम बनकर न रह जाए इसके लिए प्रयास जरूरी हैं और हर स्तर पर होने चाहिए। इंटरनेट सेवाओं को बेहतर बनाना इस दिशा में पहला कदम होना चाहिए क्योंकि वेबसाइट बनने से ज्यादा जरूरी है लोगों का उन तक पहुंचना। भारत की ऑनलाइन मौजूदगी से न सिर्फ देश समृद्ध होगा बल्कि दुनिया भर का बाजार हमारे करीब आ सकेगा। खाली पड़े इस साइबर स्पेस को भरने का यही सही वक्त है क्योंकि डिजिटल इंडिया के साथ जरूरी है सबका साथ, सबका विकास और सबका इंटरनेट।