Friday, 27 January 2017

अधूरी भिखारन

हेडलाइट्स की रोशनी मुझे सोने नहीं देती, गाड़ियों की आवाज की तो ऐसी आदत पड़ चुकी है कि एहसास ही नहीं होता लेकिन हेडलाइट्स की चमक मेरी पलकों के उस पार ऐसे रंग भरती है जैसे मेरी जिंदगी ने कभी नहीं भरे। फुटपाथ पर करवट बदलते कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता। अक्सर खुद से पूछती हूं मेरी जगह फुटपाथ पर क्यों! क्या सिर्फ इसलिए कि ऊपरवाले ने मेरे दोनों हाथ मुझसे छीन लिए, या फिर इसलिए क्योंकि मैंने अपनी किस्मत के आगे घुटने टेक दिए। नहीं! मैंने अपनी किस्मत को कभी अपनी ज़िन्दगी नहीं माना। दिन बीतते गए, आसपास सब बदलता गया लेकिन मेरी हालत वही रही,'भिखारन'। पहले भिखारन बच्ची और अब भिखारन लड़की।
           
मैंने सिर्फ एक रिश्ता देखा और समझा, जिसे सब नाम देते हैं 'मां'। मैं तो अम्मा कहती थी, खूब बात करती थी उससे। अम्मा के पास मेरे हर सवाल का जवाब होता था। हां, मैंने अम्मा से एक सवाल कभी नहीं पूछा कि मेरे पास हाथ क्यों नहीं हैं? वो उदास हो जाती थी जब भी कोई बात मेरे अधूरेपन को लेकर होती. उसने कभी मुझे अधूरा नहीं रहने दिया, एहसास दिलाती रही कि मैं अधूरी नहीं हूं. अदूरेपन के एहसास को छिपाया जा सकता है लेकिन झुठलाया नहीं जा सकता. मेरी मां सिग्नल पर रुकने वाली गाड़ियों के सामने हाथ फैलाती तो मैं वैसा भी न कर पाती, बस अम्मा के साथ रहती थी. मुझे देखकर लोगों के मन में आने वाली दया चंद सिक्कों में सिमटकर मां के हाथ पर खनक पड़ती थी. कुछ ऐसे मेरा बचपन बीत और बदलते वक़्त ने मेरी मां को बूढ़ा और मुझे जवान कर दिया, मेरा अधूरापन अब मुझे और भी सताने लगा. मां कमज़ोर हो चली थी और सिग्नल पर गाड़ियों के रुकने पर ढोलक बजाती थी. मैंने भी कुछ करतब सीख लिए थे, मेरे पैर मेरे हाथों की कमी पूरी करने लगे थे। मैंने गाड़ियों को रुकते देखा है, ये लंबी गाड़ियां मेरे करतब से ज़्यादा उस अनोखे जीव को देखने के लिए रूकती थीं जो बिना हाथों के भी पैर से हवा में रंग उकेरता था। मैं जैसे जैसे बढ़ रही थी, गाड़ियों में बैठे लोग नीचे गिरते जा रहे थे। काश मैं बच्ची ही रहती, तब लोगों की आंखों में जो दया थी उसकी जगह अब कुछ और दिखने लगा था। मासूम नहीं रही थी न मैं, समझने लगी थी। तेजी से बीतते वक़्त और उसके साथ बदलती नज़रों के बीच एक हादसा हुआ। मेरे अधूरेपन का एहसास मुझे उस रोज हुआ जब मैंने सबकुछ गंवा दिया। उस दिन अम्मा मेरे साथ सड़क पार कर रही थी। हमेशा की तरह मैं आगे चल रही थी और वो पीछे। पहला कदम फुटपथपर पड़ने के साथ ही जाने कैसे उसका पैर फिसल गया। जब मैं पीछे मुड़ी तो मैंने अम्मा को गिरते हुए देखा और अगले ही पल पीछे से आ रहे ट्रक ने उसे टक्कर मार दी। तेज़ रफ़्तार ने एक झटके में मेरी छोटी सी दुनिया ख़त्म कर दी। मुझे अच्छे से याद है, अम्मा ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया था। यह जानते हुए भी कि मैं उसका हाथ नहीं थाम सकती, उस पल उसका हाथ मेरी ओर बढ़ा था। मैं कुछ नहीं कर पाई सिवाय रोने और चीखने के। पुलिस उसकी लाश उठाकर ले गई। क्यों , कहां, पता नहीं। छोड़ गई मुझे, मेरे घर, उसी फुटपाथ पर। 
             जबसे अम्मा गई, सबकुछ बदल गया। उसकी ढोलक अब भी वहीँ रखी है, मेरे अधूरेपन का मज़ाक बनाती है। अब मैं कोई करतब नहीं करती, सिग्नल पर पांव में पकड़ा कटोरा ऊपर उठा देती हूं। गाड़ी में बैठे लोगों को अब मुझपर दया नहीं आती, उनकी नज़रें मेरे सलवार के घिसने से हुए छेदों में झांकती हैं। उनकी नज़र मेरे दोनों कन्धों के बीच ऐसे रुक जाती है, जैसे मेरी ज़िन्दगी रुकी है। मांगती हूं सबसे क्योंकि मेरी नज़र में वो मुझसे बड़े हैं, अमीर हैं, लेकिन हर गुज़रती गाड़ी अपने साथ मेरा कुछ ले जाती है। मैं यहीं छूट जाती हूं, टूट सी जाती हूं। अरे !देखो न, सुबह हो गई। फिरसे रुकने लगी हैं गाड़ियां  उसी सिग्नल पर जहां बिकना नहीं चाहती मैं, फिर भी लोग मुझे खरीदना चाहते हैं। इसके बावजूद भी कि मैं 'अधूरी' हूं, 'भिखारन' हूं।

Saturday, 14 January 2017

सच और सवाल : रोहिन, नरेन और आईआईएमसी

                25 दिसंबर, 2016। सेमेस्टर एग्जाम ख़त्म होने के बाद मैं घर पहुंचा। फेसबुक खोला तो एक ओपन लेटर शेयर हो रहा था। नरेन सिंह राव नाम के किसी फैकल्टी मेंबर ने अपने आईआईएमसी से निकाले जाने के बाद यह लेटर लिख कर सोशल मीडिया पर सबके हवाले कर दिया था। कई स्टूडेंट उस लेटर को शेयर कर रहे थे और फेयर हियरिंग की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि बिना पहले से बताए किसी को नहीं निकाला जा सकता। https://www.facebook.com/naren.singh (Open Letter)


        कई छात्र शिक्षक तो कई संस्थान के पक्ष में थे और कमेंट्स में उनकी लड़ाई जारी थी। अगले ही दिन दो छात्रों ने उस शिक्षक का कॉन्ट्रेक्ट लेटर फेसबुक पर डालकर मुझे भी टैग किया। इसमें लिखा हुआ था कि नरेन प्रोफ़ेसर नहीं हैं, एकेडमिक एसोसिएट हैं और उन्हें बिना कारण बताए हटाया जा सकता है। कॉन्ट्रेक लेटर उनके हाथ कैसे लगा, इसपर भी कमेंट और फेसबुक पोस्ट्स का संग्राम चलता रहा। 31 दिसंबर को मैं संस्थान में वापस आया और पता चला कि मामला क्या है। 

            ADPR डिपार्टमेंट के एकेडमिक एसोशिएट नरेन सिंह राव को पदमुक्त कर दिया गया। उन्होंने सोशल मीडिया पर इसे इस तरह से दिखाया कि उनको हटाने का कारण विचारधारा और संस्थान में हो रहा भेदभाव है। कई आरोप जड़ दिए(जिनमें से कुछ की जानकारी मुझे है, वह झूठ हैं)। कई छात्र उनको बिना नोटिस दिए निकाले जाने को लेकर सोशल मीडिया पर #istandwithnaren टैग के साथ स्टेटस और तस्वीरें पोस्ट करने लगे।
इस मामले पर कई मीडिया हाउसेज ने लिखा और हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम के मेरे दोस्त रोहिन ने भी इसी मुद्दे पर मीडिया रिपोर्ट तैयार की। जिसे 'न्यूजलांड्री' ने छापा/पोर्टल पर पब्लिश किया। Rohin's Report : academic-associate-sacked-students-put-under-surveillance-all-happening-in-iimc
                            इस बीच यह भी सुनने को मिला कि RTV विभाग के पांच छात्रों को संस्थान के कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन करने और छवि धूमिल करने की बात कहकर उनसे बात/पूछताछ की गई। यह छात्र निकाले गए शिक्षक का समर्थन करते हुए पोस्ट कर रहे थे। रोहिन को अचानक एक दिन ऑनलाइन मीडिया पर लिखने के कारण निलंबित(सस्पेंड) कर दिया गया। गार्ड्स को उसकी फोटो दी गई और उसके संस्थान में आने पर रोक लगा दी गई। प्रथमदृष्टया यह बात चौंकाने वाली थी और अगले ही दिन संस्थान के डायरेक्टर जनरल केजी सुरेश सर ने क्लास में आकर अपना पक्ष स्पष्ट किया। रोहिन ने अपना सस्पेंशन लेटर सोशल मीडिया पर डाल दिया और ऑनलाइन मीडिया पर लिखने को निलंबन की वजह बताया। इस पूरे मामले को मीडिया में जगह मिलना शुरू हो गई है। अलग-अलग अखबार व न्यूज़ पोर्टल इसपर लिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी घमासान जारी है। विचारधारा से लेकर व्यक्तिगत आक्षेप तक और गालियों तक... 'कुछ भी' पोस्ट हो रहा है। ऐसे कोई समाधान नहीं होता!

          दरअसल, मामले की पूरी जानकारी बहुत कम लोगों को है और जितना आधा-अधूरा पता है, लोग उसके आधार पर निर्णायक की भूमिका में आ रहे हैं। मैं किसी भी एक के समर्थन की स्थिति में नहीं हूं, न ही किसी विचारधारा से पोषित या प्रभावित हूं। IIMC के छात्र के रूप में जो भी देखा और समझा है उसके आधार पर लिख रहा हूं। मुझे हर किसी से कुछ न कुछ कहना है और कुछ सवाल हैं, जो पूरे घटनाक्रम और हर पक्ष को स्पष्ट कर देंगे। मेरी चुप्पी इसीलिए थी जिससे मैं वाकई सच लिख सकूं, विचार नहीं-तर्क लिखूं। सवाल हर किसी से, 

सबसे पहले नरेन सर से सवाल, 
           मैं आपसे कभी नहीं मिला, न आपको देखा है, जितना भी जाना है, इसी मामले के बाद। आपके कई दावे और आरोप झूठे हैं,  जिनकी मुझे जानकारी है उनका ज़िक्र कर रहा हूं। मुझे इसलिए पता है क्योंकि उन आरोपों से जुड़े शख्स मेरे दोस्त और रूममेट हैं। आप मुझे बताइए-

1- आप अपने विरोध में लिखने वालों को ब्लॉक या अनफ्रेंड कर रहे हैं? 
2- ओपन लेटर में लिखी कई बातें झूठी हैं या नहीं? क्या यह माना जाए कि आपका प्रोपोगेंडा झूठ पर आधारित है?
3- आपका मुद्दा सिर्फ इतना था कि आपको बिना बताए निकाल दिया गया। क्या सिर्फ इतना कहकर सामने आना और सवाल उठाना बेहतर नहीं होता?
4- लेटर में आपने जिन दलित कर्मचारियों को निकालने पर सवाल उठाया है, क्या आप वाकई उनके हक में खड़े हुए? कुछ किया?
5- जिस मुस्लिम छात्र (जो अब मेरा रूममेट है) को पीड़ित बताकर आप यह कह रहे थे कि उसके आत्महत्या की नौबत आ गई थी, क्या आपने उससे कभी बात की थी? वह तो आपका नाम तक नहीं जानता था और अपनी एक पोस्ट में यह बताकर आपके इस दावे को झूठा साबित कर चुका है।
6- जिस साइबर हैरेसमेंट केस का ज़िक्र आपने लेटर में किया, क्या आप कभी लड़की से मिले? इस बारे में कभी भी आगे आकर बात की? आवाज़ उठाई? लेटर में आपने लिखा कि यह मामला प्रबंधन के दबाव में  आकर सामने नहीं लाया गया। जबकि शनिवार के दिन जब संस्थान बंद होता है, पूरा स्टाफ आया और इस मामले पर बात की। कार्रवाई हुई और सजा मिली। जब आप इस मामले से जुड़े किसी व्यक्ति से नहीं मिले तो दबाव जैसी बात का ज़िक्र कैसे? अपने मन से?
7- दिल्ली हाईकोर्ट ने आपकी जिस याचिका को खारिज किया है क्या आपने उसमें इन सभी आरोपों का ज़िक्र किया था?  hc-refuses-to-interfere-with-cat-s-order-on-ex-iimc-academic-associate
               सर, ये बातें हवा हवाई नहीं हैं। वाजिब सवाल हैं, जवाब चाहता हूं। फेसबुक पर या आपसे मिलकर। बस, डर है कि जवाब देने कि बजाय अब आप मुझे unfriend न कर दें। इन निराधार आरोपों के बीच आपका मुद्दा किनारे ही रह गया। आप इन झूठे आरोपों को लेकर क्यों आए? सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट करके कौन सा हल निकालना चाहते थे आप? क्या इसलिए कि आपकी बात में दम नहीं था? सर, 
        'राजनीति यहीं से शुरू हुई।'
सवाल मेरे दोस्त रोहिन से, 
             रोहिन, एक प्रभावशाली व्यक्तिव और पढ़ाकू बच्चे की छवि। विषय पर अच्छा ज्ञान, समझदार और अच्छा वक्ता। पत्रकार बनने के सवाल पर तुमने कहा था एकेडमिक्स में जाना है। तुम्हें सस्पेंड कर दिया गया और इससे ज़्यादा चौंकाने वाला कुछ नहीं हो सकता था। इससे भी ज़्यादा यह बात पता चलने पर आश्चर्य हुआ कि गार्ड्स को तुम्हारी तस्वीर देकर तुम्हारे कैम्पस में घुसने पर रोक लगा दी गई है। मैं तुम्हारे साथ था और उसी वक़्त DG सर के पास चलना चाहता था। अगले दिन उनके क्लास में आने के बाद भी बाकी बचे सवाल #सोशल_मीडिया पर नहीं डाले, उनसे पूछकर आया हूं।

                    तुम्हारा अचानक निलंबन गलत है, मानता हूं। सवाल करने चाहिए थे, उसी वक्त। लेकिन निलंबन के बाद तुमने अनुशासन समिति और प्रबंधन से जवाब मिलने से पहले #सोशल_मीडिया की शरण में जाना बेहतर समझा। गलती वहीं हुई दोस्त! वक़्त लेकर समझते तो। सोशल मीडिया लाइक, कमेंट और शेयर देता है। मीडिया फुटेज भी दे सकता है, लेकिन समाधान नहीं। खैर, ये कुछ सवाल- 
1- सबसे बड़ा सवाल, क्या एक बार भी DG केजी सुरेश सर से मिले? सवाल जवाब किए? इस मुद्दे पर बात की? 
2- क्या नरेन सर के ओपन लेटर पर आधारित रिपोर्ट देने से पहले उसमें लगाए गए आरोपों की प्रामाणिकता की जांच की?
3- नए साल पर अपने पोस्ट में तुमने यह नहीं लिखा कि जो छात्र अपने शिक्षक के लिए खड़े हो रहे हैं वहीं बधाई दें? (तुम्हारा पोस्ट- आईआईएमसी के छात्र अपने शिक्षक के लिए खड़े हो रहे हैं. इससे बेहतर साल का अंत और नये की शुरूआत नहीं हो सकती. बाकि, जो 364 दिन जरने वाले जर्नलिस्ट तैयार हो रहे हैं वो हमें नया साल ना ही विश करें तो बेहतर.) 
4- क्या तुमने यह नहीं माना कि जो छात्र निकाले गए शिक्षक का समर्थन नहीं कर रहे, उन्हें 'प्लेसमेंट की चिंता/डर है'? तुमसे यह किसने कह दिया?
5- क्या तुम्हें इस बात का पता था कि नरेन कोर्ट में किन आरोपों के साथ गए हैं? क्या तुमने सोशल मीडिया पर फैले घमासान को रिपोर्ट का आधार नहीं बनाया? 
6- रिपोर्ट में जिस एक शख्स की पोस्ट का ज़िक्र है उसका संस्थान से कोई लेना-देना नहीं? एक फिजूल फेसबूक पोस्ट को रिपोर्ट में जगह देना, सही है? 
7- चलो अगर जगह दी भी, तो DG केजी सुरेश सर को व्यक्ति-विशेष द्वारा दी जा रही गालियों का ज़िक्र भी होना चाहिए था। किया? 
8- क्या वाकई संस्थान ने आपके मेल का जवाब आपको अब तक नहीं दिया है? 
9- किसी अखबार या पोर्टल का यह लिखना कि बिहार के रोहिन को IIMC से निकाला गया, गलत नहीं लगा? आपत्ति दर्ज कराई? इसका आपके बिहार के होने से कोई सम्बन्ध है?
दिल्‍ली में खूब पढ़-लिख रहे थे बिहार के रोहिन, गुस्‍से में IIMC ने सस्‍पेंड ही कर दिया
10- मीडिया चैनलों को लगातार बाइट्स देते जाना और कहना कि मैं सामान्य तरीके से रहना चाहता हूं, अजीब नहीं? आप इनकार कर सकते हैं। 
11- निलंबन के बाद अगर मेल या सवालों का जवाब नहीं मिला? कभी संस्थान आने और प्रबंधन से मिलने का प्रयास किया? जब आपको किसी गार्ड ने रोका हो या ज़बरदस्ती की हो? 
12- निलंबन और निष्कासन में अंतर है न? अनुशासन समिति को अपना पक्ष बताने से पहले सोशल मीडिया पर लाइव और मीडिया चैनलों को पक्ष बताना आपके विवेक के अनुसार सही है? 
               खैर, बस कुछ सवाल थे। बाकियों की तरह सुझाव नहीं दूंगा, आप खुद ही समझदार हैं। बिना किसी मतभेद/मनभेद के मुझे और अपने अन्य साथियों को भी unfriend कर दिया है। अब तुम्हें लाइव कैसे देखूं?
students-allege-surveillance-at-iimc-after-one-is-suspended-for-critical-piece-on-institute

सवाल प्रबंधन/DG केजी सुरेश सर से,
               आईआईएमसी के नए डीजी सर ने कई बदलाव किए। शुरुआत से ही संस्थान की बेहतरी के लिए काम करते दिखे। कभी भी किसी छात्र को ऑफिस आकर खुदसे मिलने से नहीं रोका। छह महीने के उर्दू पत्रकारिता के सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम को डिप्लोमा पाठ्यक्रम बनवाया। लेकिन रोहिन के निलंबन ने मुझे वाकई चौंका दिया। अचानक, बिना पूर्व चेतावनी उसे निलंबित करना। आपसे सवाल करने ही थे तो अकेले ही ऑफिस पहुंच गया। आप ही हैं जो सोशल मीडिया पर ट्रॉल और जवाब नहीं देते, ऑफिस हमेशा खुला रहता है। सुबह 11 बजे से देर रात तक।
आपसे सवाल और जवाब-

1- क्या रोहिन को जल्दबाज़ी में निकाला गया था? 
उत्तर- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। उसने न्यूज़ पोर्टल के लिए रिपोर्ट तैयार की और वो भी एकतरफ़ा। सोशल मीडिया पर लिखना अलग बात होती है, उसने न्यूज लिखी जिसमें झूठे आरोप दोहराए गए। 
2- क्या रोहिन इस मामले को लेकर आपसे कभी मिला?
उत्तर- वो तो मुझसे मिला ही नहीं। मुझे तो ख़ुशी होती अगर वो एक बार भी अपनी बात लेकर आता। एक बार भी वह मुझसे मिलने नहीं आया। 
3- क्या रोहिन की मेल का जवाब नहीं दिया गया? 
उत्तर- बिलकुल दिया गया है। उससे कहा गया है कि अनुशासन समिति के सामने आकर अपना पक्ष रखे। (रोहिन के सवाल और उसके दिए गए जवाब दोनों मेल की कॉपी मुझे दी है, जिसे आखिरी में अटैच कर रहा हूं।)*
4 - सर! निकाले गए नरेन राव सर का कॉन्ट्रेक्ट लेटर कुछ बच्चों ने पोस्ट किया? वह लेटर उनके हाथ कैसे लगा? https://www.facebook.com/photo.php (contract letter)
उत्तर- हमने तो नहीं दिया। लेकिन आजकल डॉक्युमेंट्स का फोटो खींचकर व्हाट्सएप पर डालना इतना आसान हो गया है कि पता ही नहीं लगता। कब आपकी बात को कोई रिकॉर्ड कर रहा हो, पता ही नहीं चलता। 
5- रोहिन को सीधा सस्पेंड करने की वजह क्या रही?
उत्तर- कोई भी अनुशासनहीनता करेगा तो उसे सजा मिलेगी। अगर आप गलती पर गलती करेंगे तो अनुशासन समिति को मामला सौंपना विकल्प होगा। निलंबन कोई सजा नहीं है, आपको समिति के सामने अपना पक्ष रखना है। पिछले मामलों में निलंबित छात्र भी संस्थान में वापस आ चुका है और क्लासेज कर रहा है। 
6- सर! क्या न्यायालय में विचाराधीन मामले पर रिपोर्टिंग नहीं हो सकती? 
उत्तर- ऐसा नहीं कहा मैंने! होती है, लेकिन उसका आधार वही तथ्य होते हैं जो न्यायालय के सामने रखे गए हों। उसके बाहर या सोशल मीडिया पर लगाए गए आरोप नहीं। 
                    बाकी सर क्लास में अपना पक्ष स्पष्ट कर चुके थे। आरोपों से इतर इस बात में कोई दो राय नहीं कि संस्थान में छात्रों को बेहतर करने और सीखने के मौके दिए जा रहे हैं और DG सर की गाड़ी सबसे ज़्यादा देर से वापस जाती है। संस्थान में भेदभाव और जातिवाद? नहीं! कभी भी किसी ने मेरी जाति और पृष्ठभूमि के आधार पर मुझे कोई मौका नहीं दिया। कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ है। जिसने गलती की, उसे सजा मिली है।

मेरी बात : 
                   मैं गलत हो सकता हूं, हर कोई हमेशा सही हो यह ज़रूरी तो नहीं। गलत रोहिन भी हो सकता है, संस्थान भी और नरेन भी। इस सब के पीछे जो भी सामने आया वो है, सोशल मीडिया का घमासान। आईआईएमसी में हालात बुरे हैं? भेदभाव है? वाकई? नहीं है मेरे दोस्त। इस बात से इनकार कर सकते हो लेकिन खुद से झूठ नहीं बोल सकते। अहम् से बढ़कर भी बहुत कुछ है। अगर संस्थान से जुड़ी समस्या रही हो, तो क्यों न प्रबंधन से उसपर बात की जाए। सुधार ज़रूरी हो तो प्रबंधन के साथ मिलकर किया जा सकता है, सोशल मीडिया पर बताकर नहीं। अभी बेवजह झूठी बुनियाद पर संस्थान की छवि खराब नहीं होने दो। दोस्त जो बात तुम फेसबुक पर लाइव कहते हो, हाथ जोड़कर कहते हो कि मुझे पढ़ने दीजिए, चलो न डीजी सर से या डिसिप्लिनरी कमिटी से कहकर देखो। अपराधी नहीं हो तुम, हम साथ चलेंगे। प्रबंधन में भी किसी का तुमसे व्यक्तिगत मनमुटाव नहीं है। तुम योग्य हो तभी यहां हो। अड़ो मत और गलतियां मत करते जाओ।
                    शेष, इस पोस्ट का आधार मेरे सामने हुआ पूरा घटनाक्रम है, और यह तथ्य आधारित है। मैं किसी भी एक पक्ष के लिए नहीं लिख रहा हूं। रोहिन का निलंबन या नरेन सर का निष्कासन सही है, ऐसा में एक बार भी नहीं कहता। कुछ छुपे तथ्यों का स्पष्ट होना ज़रूरी था, इस पोस्ट के माध्यम से मैंने यही कोशिश की है। यह पोस्ट लिखना मेरा अपना विचार था और इसपर किसी तरह की विचारधारा, राजनीति या व्यक्ति-विशेष का कोई प्रभाव नहीं है।

*रोहिन के सवाल और उसके दिए गए जवाब दोनों मेल की कॉपी  


रोहिन का मेल/सवाल 

संस्थान का रिप्लाई/जवाब-1 
  
संस्थान का रिप्लाई/जवाब-2 

संबंधित ख़बरें -

http://www.dnaindia.com/delhi/report-iimc-suspends-student-for-writing-about-sacked-faculty-2291628

http://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/IIMC-student-suspended-for-post-backing-sacked-teacher/article17025023.ece

https://www.scoopwhoop.com/Why-This-Journalism-Student-Was-Suspended-By-Indian-Institute-For-Mass-Com-For-Writing-A-Report/#.pkyy404fl

http://www.bhadas4media.com/article-comment/11684-rohin-verma-iimc-suspend

http://hindi.oneindia.com/news/delhi/iimc-student-rohin-verma-suspended-for-writing-online-394703.html

Thursday, 5 January 2017

लड़की मैं हूं! लेकिन अब डरना तुम्हें चाहिए...


                        पापा मुझे बाहर कम जाने देते हैं, रात में जल्दी घर आने को कहते हैं, पार्टी करने की छूट नहीं देते, अनजान लोगों से बात करने से मना करते हैं। क्या वो मुझसे प्यार नहीं करते? वो बुरे हैं, ओपन माइंडेड नहीं हैं? नहीं! वो बहुत अच्छे हैं, मुझे आगे बढ़ने देना चाहते हैं, उड़ते हुए देखना चाहते हैं, लेकिन उन्हें रोकटोक करनी पड़ती है। पता है क्यों! तुम्हारी वजह से। सही सुना, तुम्हारी वजह से। 
                 उन्हें पता है, मैं सूट पहनकर निकलूं, टॉप पहनूं या फिर हिज़ाब... तुम्हारी तिरछी और बेशर्म नज़रें मेरी माप लेना चाहेंगी, झांकना चाहेंगी मेरे कपड़ों के अंदर, नज़रों से आगे बढ़कर छूना भी चाहोगे मुझे, क्यों? लड़की हूं इसलिए! 
हर तरफ, हर जगह, हर वक़्त तुम्हारी बेशर्मी दिखती है। क्या मुझे डरना चाहिए? झूठ नहीं बोलूंगी, डर लगता है। जितना गुस्सा आता है उससे ज़्यादा डर लगता है। कह सकती हूं कि कमज़ोर नहीं हूं, आज़ाद हूं, निडर हूं। लेकिन मुझपर लगने वाली पाबंदियों की वजह भी अपनों का यही डर है। 
                क्या मुझे इसलिए डर लगता है कि मैं लड़की हूं? नहीं! बेशर्म... डर इसलिए लगता है क्योंकि तुम इंसान नहीं रहे। पड़ोस में रहने वाले अंकल से लेकर मुझे फेसबुक पर मैसेज करने वाले अनजान शख्स तक, सब छूना चाहते हैं मुझे, खा जाना चाहते हैं। इंसान नहीं रहे हो तुम अब। हवस, बेशर्मी और अश्लीलता तुममें इस कदर भर चुकी है कि शायद अपनी मां के सूखते कपड़े देखकर भी तुम्हारा मन मचल जाता हो। मानसिकता को दोष नहीं देना, तुम भी पल्ला झाड़ लोगे। मानसिकता तुम्हें नहीं, तुम उसे वाहियात बनाते हो। चार महीने की बच्ची से लेकर 84 साल तक की बुज़ुर्ग तक सबमें तुम्हें दिखते हैं अंग। नहीं दिखती ज़िंदगी, नहीं दिखता एक मन। बस टूट पड़ना है तुम्हें, नोच लेना है मुझे। 

               कभी महसूस किया है ये डर। जब कोई बिना तुम्हारी मर्ज़ी के तुम्हें छुए, मसल जाए। सिर्फ तुम्हारा शरीर ही नहीं, मन भी दर्द से चीख उठता है। खुदसे नफरत होने लगती है, हज़ार बार धुलती हूं लेकिन वो घिनौना एहसास नहीं धुलता। शर्म नहीं आती तुम्हें, इंसान जो नहीं हो। मुंह पर शराफत का मुखौटा लगाए तुम्हें भी बस मौके की तलाश है। मैंने कुछ नहीं किया, तो पूरा बोलो न! मौका मिलेगा तो चूकूंगा नहीं। 
                 अब वक़्त तुम्हारे डरने का है। तुम्हें किसी मर्द ने नहीं जना, किसी मर्द से शादी नहीं हुई है, कोई मर्द राखी नहीं बांधता। कैसे यकीन दिलाओगे खुदको। जब तुम्हारी बेटी स्कूल जाएगी, तो तुम्हारे जैसा घिनौना टीचर खेल के नाम पर उसके कपड़ों में हाथ नहीं डालेगा। जब शाम को मां बाजार जाएगी तो उसे तुम जैसे भेड़िए दबोच नहीं लेंगे। भैया कोचिंग जा रही हूं बोलकर जाने वाली बहन को तुम्हारे जैसा हैवान गाड़ी में नहीं खींच लेगा। हर कोई तुम जैसा ही दरिंदा है अब, किस-किस से बचाओगे। अब तो डरना शुरू कर दो। 
                 ओह! तो तुम भी पाबंदियां लगा दोगे। बहन अकेले बाहर नहीं जाएगी, बेटी को पढ़ने और मां को बाजार नहीं भेजोगे। अच्छा, मर्यादा के नाम पर कितना जकड़ोगे मुझे। खुद मर्यादा का मतलब समझ सकते, तो बेहतर होता। जंज़ीरों में जकड़ा है न मुझे। अब सब ठीक रहेगा। रात में क्यों निकली, तो क्या दिन में बलात्कार नहीं होते? छोटे कपड़े क्यों पहने, तो हिज़ाब पहने लड़कियों को कोई नहीं घूरता? जवान लड़की बाहर क्यों निकली, बच्चियों और बुजुर्ग महिलाओं का रेप नहीं होता? 
                  बेवकूफ! तुम्हारी तर्कशक्ति मर चुकी है। पागल हो चुके हो तुम। मेरी ज़रुरत है न तुम्हें? अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए। तो मुझे ज़िंदा तो रखना पड़ेगा, बचाकर रखना पड़ेगा। अरे मुझे बचाने वाले भी तुम हो और नोचने वाले भी। पाबन्दी की ज़ंजीरें और कसते जाओगे। इसी डर की वजह से, जो तुमने पैदा किया है। अगर यूं ही कसती जाएंगी पाबन्दी की ज़ंजीरें तो मर जाऊंगी मैं, लेकिन मुझसे पहले तुम मरोगे। कमसे कम इस डर से तो डरो। मुझे मत बचाओ, खुद को बचाओ। वरना आओ, खा लो मुझे, नोच लो। मुझे मारो और तुम भी बदतर मौत मरो।

बेटी! ये चिट्ठी तुम्हारे लिए...

प्यारी बिटिया,
                    शायद पहला ख्याल तुम्हारे मन में यही होगा कि मैं ये चिट्ठी अभी से क्यों लिख रहा हूं, जबकि मैं खुद पूरे 21 साल का नहीं हुआ। मेरी बच्ची, शायद आज से दस साल बाद हालात ऐसे न रहें। सुधर जाएं या फिर बदतर हो चुके हों, इसलिए यही सही वक़्त है तुम्हें बताने का कि जब तक तुम मेरी उम्र की होगी हमारा रिश्ता कैसा होगा।
          मैं चाहता था कि काश! मैं लड़की होता। हंसो नहीं बुद्धू, दिखा देना चाहता था सबको कि एक लड़की के तौर पर मैं कौन हूं। पलटकर जवाब देना चाहता था सबको। लड़का हूं तब भी जवाब दिए, फटकार लगाई, आवाज़ उठाई, लेकिन एक सच को नहीं झुठला पाया कि मैं लड़की नहीं हूं और मैं लड़की होने का दर्द नहीं जानता। बस देख सकता हूं लड़कियों की तकलीफ, उसे महसूस नहीं कर सकता। पता है, मुझे अपने जैसा बेटा नहीं, तुम्हारे जैसी बेटी ही चाहिए थी।
    
   क्या लड़की होना सिर्फ दर्द और तक़लीफ़ देता है! नहीं मेरी बच्ची, कोई दर्द नहीं झेलोगी तुम, कोई तकलीफ नहीं होगी तुम्हें। कोई पाबन्दी, कोई रोकटोक नहीं झेलोगी तुम। बचपन में गैस और बर्तनों से भी खेलोगी और डॉक्टर की किट से भी। बन्दूक से भी खेलना और गुड़िया से भी, लेकिन तुम अपनी गुड़िया की शादी नहीं रचाओगी, उसे पढ़ाओगी और लड़ना सिखाओगी। बचपन में तुम्हें कमज़ोर होने का झूठा एहसास नहीं दिलाऊंगा, तुम सब कुछ कर सकती हो, यह बताऊंगा।
         मेरी बच्ची! स्कूल में अक्सर तुम्हें लड़की-लड़की सुनने को मिल जाएगा। शर्माना नहीं, गर्व महसूस करना। हंसी आए तो छुपाकर नहीं, खिलखिलाकर हंसना। सबसे बात करना, खूब सवाल करना। कुछ भी कहने में संकोच मत करना। कोई लाख समझाए क्या सही है क्या गलत, कोई सीमा रेखा नहीं होगी तुम्हारे लिए। लड़की हो, ये मत करो, वहां मत जाओ! खूब चीखेंगे लोग, उनकी एक मत सुनना। बेफिक्र भागना, दौड़ लगाना, उड़ने की कोशिश करना। घर आकर मुझे सारी कहानियां सुनाना और हम साथ ठहाके लगाएंगे।
          जब तुम ऐसा करने लगोगी न! लोगों को परेशान होते और तिलमिलाते हुए देखोगी। तुम्हारा हर आज़ाद कदम उनको अखरेगा और ऐसे में अगर कोई तुम्हारा हाथ पकड़कर आगे बढ़ने से रोके, अपनी पूरी ताकत से घूंसा मारकर उसका मुंह तोड़ देना। कभी कोई तुमसे लड़ पड़े, तो रोने मत लगना, न तो पापा से शिकायत कर दूंगी कहकर भाग आना। तुम्हें लगता है तुम सही हो, तो बस डटी रहना, हार मत मानना।
           मैं अभी जितना बड़ा हूं, जब तुम इतने की हो जाओगी, सब बदल जाएग। जब तुम रास्ते में निकलोगी, लोग तुम्हें घूरेंगे। नज़रें मत चुराना, उनकी आंखों में आंखें डालकर उन्हें घूरना और एहसास दिलाना कि तुम कौन हो। कोई बोले तुमसे, इसका इंतज़ार किए बगैर ही उसे करारा जवाब देना। अगर किसी की हिम्मत आगे बढ़कर तुम्हें छूने की हो तो कदम पीछे मत खींचना, आगे बढ़कर ऐसा वार करना कि उसे भी ज़िन्दगी भर याद रहे। बाकी एक और ऑप्शन है, तुम चाहो तो एक छोटी हथौड़ी अपने पर्स में रख लेना। ओहो! इसलिए नहीं कि तुम डरती हो, इसलिए जिससे सिर फोड़ने में आसानी हो। अपनी ओर उठने वाली हर नज़र से नज़र मिलाकर उसे शर्मसार करना। तुमपर कोई वार करे तो भागने के बजाय उसपर दोगुनी तेजी से वार करना। उसका सिर ज़रूर फोड़ना!
        जब तुम इतनी हिम्मत करने लगोगी मेरी बच्ची, सब तुमको लेकर राय बनाएंगे। तुम्हारे चलने, बैठने और बोलने के तरीके से भी उन्हें दिक्कत होगी। तुम किसी की एक मत सुनना, जैसा चाहो रहना। तुम्हारे कपड़े भी उन्हें अच्छे नहीं लगेंगे, लेकिन इतना पता है, उनकी सोच से ज़्यादा छोटे नहीं होंगे। कभी मत सुनना उनकी मेरी बच्ची, अपनी सुनना। डरने की गलती मत करना, डरकर सौ साल जीने से बेहतर होगा एक आज़ाद दिन जीना। अपने लिए ही नहीं, सबके लिए जीना। मुझे पता है तुम यह सोचकर आगे नहीं बढ़ जाओगी कि गड़बड़ है भी तो क्या, मेरे साथ तो नहीं। हर दोस्त के लिए लड़ना, हर अंजान के लिए, हर लड़की के लिए लड़ना। आवाज़ उठाना और अगर कोई न सुने तो हथियार उठाने में वक़्त मत लगाना।
        मैं ये नहीं कहूंगा कि खुदपर भरोसा है जो तुम्हें सही-गलत का मतलब सिखा दूंगा। तुमपर भरोसा है मेरी बच्ची, तुम जो करोगी सही होगा। अगर गलती से कोई कदम उठा भी लिया, तो ठोकर लगेगी और सीख जाओगी। तुम्हारा रक्षक नहीं बनूंगा, तुम्हें लड़ना सिखाऊंगा। हरदम साथ नहीं चलूंगा, अकेले चलना सिखाऊंगा। पिंजरे में बंद नहीं करूंगा, उड़ना सिखाऊंगा। जैसा कोई अपनी बेटी को नहीं बना सका, तुझे ऐसी बेटी बनाऊंगा।

तुम्हारा, बुद्धू पापा!
प्राणेश