आज विश्व पृथ्वी दिवस है. हाँ, शायद यही तो कहते हैं हम अपने इस ग्रह को, पृथ्वी, धरती, भूमि. आज इसका दिवस है. एक अनमोल उपहार के रूप में हमें प्रकृति से अगर कोई अनमोल उपहार मिला है, तो वह है हमारा यह गोल ग्रह- पृथ्वी. उपहार हमें मिला है, तो उसका उपभोग भी हमें ही करना है. तो हमने इसका उपभोग शुरू किया, और ज़रूरतों के साथ-साथ इस पर अधिक से अधिक उत्पादन और लाभ देने का दबाव डालते रहे.
यहाँ बचपन में सुनी एक कहानी याद आती है. एक बार एक किसान जंगल में रो रहा था, वह गरीब और भूखा था. जिस पेड़ के नीचे वह रो रहा था. उससे किसान की तकलीफ देखी न गई. उसने किसान से कुछ लकड़ियाँ तोड़कर ले जाने को कहा जिससे कुछ पैसे मिल सकें. कुछ ही दिनों में किसान फिर वहां आया और व्यापर शुरू करने के नाम पर और लकड़ियाँ काटकर ले गया. किसान की ज़रूरतें बढ़ती रहीं और पेड़ कटता रहा. अब वहां पेड़ की जगह ठूंठ रह गया. किसान फिर आया पर उसे ले जाने के लिए कुछ नहीं मिला, उसे ठंडी छाँव तक नहीं मिली. तेज़ धूप और गर्मी की वजह से किसान ने भी वहीँ दम तोड़ दिया.
पृथ्वी को अंग्रेजी भाषा में कहा जाता है 'Earth', हिंदी में अर्थ का मतलब होता है धन और रुपया पैसा. अपनी इस अर्थ का हमने अर्थ के लालच में तेजी से दोहन किया है और इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं. बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि और तापमान में बढ़ोत्तरी से आज हर व्यक्ति और खासकर अन्नदाता किसान त्रस्त है. पिछले कुछ वर्षों में अन्न उत्पादन में आई कमी और पेय-जल की समस्या इसका ताज़ा उदाहरण हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछली एक सदी में धरती के तापमान में आई लगभग 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का सीधा कारण वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन का दहन है. इस तापमान के बढ़ने से आर्कटिक के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, ऐसा लगातार होने पर तटीय क्षेत्रों के अस्तित्व पर संकट आ सकता है.
आईपीसीसी का आकलन बताता है कि 21वीं सदी में पृथ्वी की सतह के तापमान में 1.1 से 2.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़त होने की आशंका है. इसका नतीजा गर्म हवाएं, जलवायु परिवर्तन, सूखा, अधिक वर्षा व न्यूनतम अन्न उत्पादन के रूप में देखने को मिलेगा.
सिर्फ समस्या बता देना हल नहीं होता. हम सिर्फ सवाल छोड़ कर चलें जाएँ यह कहीं से भी सही नहीं है. गलतियाँ हम कर चुके हैं और नासमझी में लगातार करते जा रहे हैं. इन गलतियों को सुधारने का हमारे पास अब भी एक मौका है. हमारे पास एक हथियार है, वृक्ष. कहते हैं धरती के दो तिहाई भाग पर जल है और शेष भूमि, शेष एक तिहाई के लगभग आधे से ज्यादा हिस्से पर हम इंसानों का कब्ज़ा है. हमें ज्यादा कुछ नहीं करना सिर्फ एक पेड़ लगाना है.
आप मानें या नहीं, 300 पेड़ मिलकर एक व्यक्ति द्वारा पूरी ज़िंदगी में फैलाए गए प्रदूषण को ख़त्म करने की क्षमता रखते हैं. इमारतों के आस-पास उगाये गए पेड़ घरों में एसी की ज़रुरत में 30 प्रतिशत की कमी करते हैं. तो अगर इस बार पृथ्वी दिवस पर कुछ अच्छा करने का मन हो, तो बिना दूसरी बार सोचे आज ही एक पेड़ लगाएं.
अगर आप ऐसा नहीं कर रहे तो बुरा मत मानिए लेकिन आपको इस पृथ्वी पर रहने का कोई हक नहीं. जिसने जिंदगी भर अपनी गोद में पाला क्या उसके ज़ख्मों पर मरहम लगाना आपका काम नहीं? ये ज़ख्म भी इसे हमसे मिले हैं. तो सिर्फ सोचिये नहीं, कुछ कर दिखाइए-वृक्ष लगाइए.
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