Saturday, 30 April 2016

अधूरा सच, एक वाकया जिसने मुझे एहसास कराया- आँखें हमेशा सच नहीं देखतीं!

आँखें हमेशा सच देखें ये ज़रूरी नहीं! फिल्मों में ऐसा दिखाना ज़रा आसान होता है, आम जिंदगी में ऐसा होगा एक बार को कोई नहीं मानता. रोज़ हमें जाने कितनी ख़बरें देखने को मिलती हैं, और हम एक पल में उनपर यकीन कर लेते हैं. एक वाकया हुआ मेरे साथ और मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि किसी मामले में अपनी राय बनाने में हम ज़रा भी वक़्त नहीं लगाते.

हुआ यूं कि 25 अप्रैल, सोमवार शाम मैं लखनऊ से वापस घर लौट रहा था. मैंने सड़क के किनारे अंगौछा बिछाकर बैठे एक बुजुर्ग को देखा. मुझे लगा शायद कोई भिखारी होगा. मैं घर पहुंचा और थोड़ी देर बाद किसी काम से फिर बाहर निकलना पड़ा. वो बुजुर्ग अब भी वहीँ बैठा था. तभी एक लगभग 40 साल का व्यक्ति वहां आया और उसने बुजुर्ग को पीटना शुरू कर दिया, बेहद गुस्से में दिख रहे उस व्यक्ति ने बुजुर्ग से भीख में मिले पैसे दिखाने को कहा और उसे भगाने लगा.


ये देखकर मुझे बेहद गुस्सा आया. एक बार को मन हुआ कि इसका वीडियो बनाऊं और पुलिस में दे दूं. अंधेरा होने की वजह से ऐसा नहीं कर पाया, लेकिन मुझसे और नहीं सहा गया. आखिर मैंने उससे पूंछा कि वो ऐसा क्यों कर रहा है. बेहद गुस्से में मैंने उसे ऐसा करने से मना किया.

अगले ही पल उसका रोल बदल गया, उस निर्दयी से दिख रहे आदमी की आँखें भर आई और उसने कहा, 'बेटा! ये मेरे बड़े भाई हैं. जाने कब एक रेल हादसे में इनके दोनों पैर कट गए. आठ साल तक ये घर वापस नहीं लौटे. अचानक एक दिन देवां में हाजी वारिस अली शाह की दरगाह  पर गए मेरे गाँव के कुछ लोगों ने इन्हें भीख मांगते हुए देखा. जून 2015 में मैं भी इन्हें ढूँढ़ने दो बार वहां गया और इन्हें घर वापस लाया.

तब से ये मेरे साथ रह रहे हैं, जो हम खाते-पहनते हैं वही इन्हें भी देते हैं. इन्हें घर में बोरियत होती है. तो हमने इन्हें बाहर कुर्सी पर बिठाना शुरू किया, लेकिन ये अपनी आदत से मज़बूर हैं. आज दोपहर में मेरी आँख लग गई और मौक़ा पाते ही ये घर से बाहर निकल आए, भीख मांगने बैठ गए. ऐसे में बेटा आप ही बताओ, मुझपर क्या बीतेगी। सब देखकर यही कहेंगे कि बिचारे को कुछ खाने को नहीं देता, परेशान करता हूँ.

जो इंसान कुछ देर पहले तक क्रूर और निर्दयी लग रहा था, अब आँखों में आंसू लिए बेचारा लग रहा था. मैं कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था. वह खुद ये मान रहा था कि बड़े भाई को डांटना या उनपर हाथ उठाना उसे तकलीफ देता है, लेकिन जब भाई ऐसी हरकत करे तो गुस्सा आना वाजिब है.

अब मैं शर्मिन्दा था, मैंने बिना पूरी बात समझे उसे बुरा समझ लिया था. आँखों ने जो देखा उसे सच मान बैठा, क्योंकि भरोसा है इन आँखों पर, जो नज़रों के सामने हो वो झूठ कैसे हो सकता है. आज हमारी आँखें रोज ऐसे अधूरे सच देखती हैं  और उनपर एक पल में यकीन कर लेती हैं. किसको इतनी फुर्सत है कि हर घटना पर रिसर्च करे.

मैं सोच रहा था अगर मैं उस आदमी से बात ही न करता और उसका वीडियो बनाकर शेयर कर देता तो चंद घंटों में उसे सैकड़ों लोग भला-बुरा कह रहे होते, कमेंट्स की बाढ़ आ जाती. जो इंसान सच में अच्छा है उसे बुरा बनने में वक़्त नहीं लगता. रोज हम जाने कितने वायरल वीडियोज़ और फोटोज पर आँखें मूँद कर भरोसा करते हैं और किसी इंसान को बुरा या हीरो मान लेते हैं.

ये घटना मैंने आपसब के साथ सिर्फ इसलिए शेयर की, जिससे अगली बार आप किसी भी फोटो या तस्वीर को देखकर अपनी राय न बनाएं. समझने की कोशिश कीजिये, आपको कितनी  आसानी से बेवकूफ बनाया जा रहा है. तो अगली बार अगर आपको कोई ब्रेकिंग न्यूज़ उड़ती भैंस की दिखे तो सिर्फ वीडियो पर भरोसा न करें, क्योंकि आँखों देखा हमेशा सच हो ये ज़रूरी नहीं!

Monday, 25 April 2016

पता भी नहीं चलेगा और हो जायेंगे 'बैंक फ्रॉड' (ठगी) के शिकार! कैसे बचें...

बैंक की पहुँच अब हमारे लैपटॉप से लेकर मोबाइल तक हो चुकी है. ऑनलाइन शॉपिंग युवाओं के बीच ट्रेंड बन चुका है., ऐसे में ठग और जालसाज भी हाईटेक तरीके अपना रहे हैं. आइये जानते हैं क्या हैं ये हाईटेक तरीके और कैसे होगा इनसे बचाव,

   फिशिंग(इन्टरनेट फ्रॉड)


इसमें आपके मेल इनबॉक्‍स में आपकी बैंक से एक मेल आता है.
इसके जरिए आपका बैंक अकाउंट नंबर, पासवर्ड और कई व्यक्तिगत जानकारी मांगी जा सकती है.
कुछ मेल लॉटरी निकलने के होते हैं, जो लालच देते हैं.
ऐसे मेल फर्जी होते हैं जो ठग भेजते हैं.
अपना पासवर्ड या एटीएम पिन कभी भी मेल पर शेयर न करें.
बैंक कभी भी आपकी निजी जानकारी मेल से नहीं मांगते.


              वेब फिशिंग(फर्जी साइट)

वेबसाईट फिशिंग में अटैकर्स एक असली वेबसाईट जैसा दिखने वाला पेज बना देते है.
लोग धोखे में आकर उनमें लॉग इन कर देते हैं.
इससे आपके डीटेल्स और पासवर्ड उनके पास चले जाते हैं.
असली साईट के नाम से पहले बंद ताला बना दिखता है.
साथ ही हरे रंग से https लिखा होता है.




 विशिंग(अकाउंट डीटेल्स का वेरिफिकेशन)

इसमें अटैकर आपको फ़ोन कर आपसे जानकारी हासिल करता है.
कॉल में दूसरा व्यक्ति खुद को आपको बैंक या क्रेडिट कार्ड का एक्जिक्‍यूटिव या मैनेजर बताता है.
वह आपको लुभावने ऑफर देता है या अपनी निजी जानकारी वैरीफाई करने को कहता है.
अगर आपने क्रेडिट कार्ड या ऐसी सुविधा के लिए अप्लाई ना किया हो तो निजी जानकारियां बिल्कुल न दें.
true-caller app इसमें मदद कर सकता है.

         

         स्मिशिंग(बैंक का फेक SMS)

आपको बैंक की और से एक फर्जी SMS मिलता है.
जिसमें अपने डीटेल्स मैसेज में टाइप कर भेजने की बात लिखी होती है.
यह SMS आपकी जानकारी वैरीफाई करने का दावा करता है.
भूल से भी ऐसे किसी मैसेज का जवाब न दें.

  
    
    स्किमिंग(डेबिट कार्ड से शॉपिंग)

यह फ्रॉड डेबिट या क्रेडिट कार्ड से शॉपिंग करते वक़्त हो सकता है.
इसमें रीटेलर आपका कार्ड मशीन में स्वाइप करता है.
मशीन के साथ लगी किसी दूसरी डिवाइस में कार्ड के मैग्नेटिक टेप में सेव डाटा फीड हो जाता है.
बाद में उस डाटा का उपयोग खरीददारी के लिए किआ जा सकता है.
कार्ड से खरीददारी के वक़्त सतर्क रहें.

 कार्डिंग(फर्जी डेबिट कार्ड)

इसमें किसी के खोए हुए या चोरी किए गए कार्ड से ठगी होती है.
आपकी जानकारी हासिल होने के बाद अटैकर नया कार्ड बनाता है.
पहले इस फर्जी कार्ड के टेस्ट के लिए वह छोटा लेनदेन करता है.
इसके बाद आपके अकाउंट से बड़ी रकम निकल जाती है.
कार्ड खोने पर तुरंत बैंक में रिपोर्ट करें.



               अनसिक्योर ब्राउजिंग

ऑनलाइन बैंकिंग पब्लिक कंप्यूटर पर करने से आप फ्रॉड का शिकार हो सकते हैं.
कुछ साइबर कैफे आपका पासवर्ड और डीटेल्स अपने आप सेव कर लेते हैं, और आपको पता भी नहीं चलता.
बाद में वो इस जानकारी का उपयोग रकम निकासी के लिए करते हैं.
पब्लिक वाईफाई का प्रयोग बैंकिंग के लिए करने पर भी ऐसा हो सकता है.
बैंकिंग न करें और इसके लिए हमेशा अपने निजी कंप्यूटर का इस्तेमाल करें.


    एप-फिशिंग

कई एंड्राइड एप्लिकेशन्स आपके फ़ोन से डाटा चुरा सकती हैं.
अटैकर एक फेक app बनाता है जो दिखने में सिंपल सी लगती है.
लेकिन ये app आपके फ़ोन में टाइप की गई डीटेल्स उसतक पहुंचा देती है.
आपको अंदाज़ा भी नहीं लगता और आपका डाटा चोरी हो जाता है.
apps केवल एप-स्टोर से ही डाउनलोड करें.



        मोबाइल बैंकिंग

मोबाइल बैंकिंग का बढ़ता चलन इसकी वजह बना है.
पेटीएम और मोबीक्विक जैसी सेवाएँ सीधे बैंक खाते को मोबाइल से जोड़ देती हैं.
मोबाइल खो जाने पर इनसे पेमेंट आसानी से किया जा सकता है.
बहुत से अटैकर मोबाइल चोरी कर ऐसा करता हैं.
मोबाइल पर पासवर्ड लगाकर रखें और फोन खोने पर तुरंत रिपोर्ट करें.



 वायरस

कम्यूटर पर बैंकिंग करते वक़्त हैकर्स वायरस इंजेक्ट करने की कोशिश करते हैं.
ये वायरस उसे जानकारी देते हैं कि आप क्या टाइप कर रहे हैं.
आप सामान्य रूप से कंप्यूटर चलते हैं और आपको पता भी नहीं चलता.
इससे बचने के लिए ज़रूरी है कि कम्यूटर में फायरवाल ऑन रखें.
अपने एंटीवायरस सॉफ्टवेयर को अपडेट करते रहें. 

Friday, 22 April 2016

World Earth Day: 'अर्थ' के लिए Earth का दोहन!


       आज विश्व पृथ्वी दिवस है. हाँ, शायद यही तो कहते हैं हम अपने इस ग्रह को, पृथ्वी, धरती, भूमि. आज इसका दिवस है. एक अनमोल उपहार के रूप में हमें प्रकृति से अगर कोई अनमोल उपहार मिला है, तो वह है हमारा यह गोल ग्रह- पृथ्वी. उपहार हमें मिला है, तो उसका उपभोग भी हमें ही करना है. तो हमने इसका उपभोग शुरू किया, और ज़रूरतों के साथ-साथ इस पर अधिक से अधिक उत्पादन और लाभ देने का दबाव डालते रहे.


यहाँ बचपन में सुनी एक कहानी याद आती है. एक बार एक किसान जंगल में रो रहा था, वह गरीब और भूखा था. जिस पेड़ के नीचे वह रो रहा था. उससे किसान की तकलीफ देखी न गई. उसने किसान से कुछ लकड़ियाँ तोड़कर ले जाने को कहा जिससे कुछ पैसे मिल सकें. कुछ ही दिनों में किसान फिर वहां आया और व्यापर शुरू करने के नाम पर और लकड़ियाँ काटकर ले गया. किसान की ज़रूरतें बढ़ती रहीं और पेड़ कटता रहा. अब वहां पेड़ की जगह ठूंठ रह गया. किसान फिर आया पर उसे ले जाने के लिए कुछ नहीं मिला, उसे ठंडी छाँव तक नहीं मिली. तेज़ धूप और गर्मी की वजह से किसान ने भी वहीँ दम तोड़ दिया.


कहानी का इससे कोई सीधा सम्बन्ध हो न हो, एक सच यह है कि हम उस लालची किसान की तरह होते जा रहे हैं. हमारी ज़रूरतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं. हम धरती को खोद रहे हैं, पेड़ों को काट रहे हैं, भूजल को फिजूल में बहा रहे हैं और खुद ब खुद आपदा को निमंत्रण दे रहे हैं. जब तक हमने इसे धरती कहा, यह पूजनीय रही, हमने इसका सम्मान किया. लेकिन जबसे हम इसे ज़मीन कहने लगे, हमने इसके टुकड़े कर दिए, इसके लिए लड़ाइयाँ होने लगीं. जब तक इसपर लगे वृक्ष हमें वन-उपवन नज़र आये तब तक उनसे प्यार किया, लेकिन जबसे उन्हें जंगल का नाम मिला, उनका खात्मा शुरू हो गया.

पृथ्वी को अंग्रेजी भाषा में कहा जाता है 'Earth', हिंदी में अर्थ का मतलब होता है धन और रुपया पैसा. अपनी इस अर्थ का हमने अर्थ के लालच में तेजी से दोहन किया है और इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं. बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि और तापमान में बढ़ोत्तरी से आज हर व्यक्ति और खासकर अन्नदाता किसान त्रस्त है. पिछले कुछ वर्षों में अन्न उत्पादन में आई कमी और पेय-जल की समस्या इसका ताज़ा उदाहरण हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछली एक सदी में धरती के तापमान में आई लगभग 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का सीधा कारण वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन का दहन है. इस तापमान के बढ़ने से आर्कटिक के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, ऐसा लगातार होने पर तटीय क्षेत्रों के अस्तित्व पर संकट आ सकता है.


 आईपीसीसी का आकलन बताता है कि 21वीं सदी में पृथ्वी की सतह के तापमान में 1.1 से 2.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़त होने की आशंका है. इसका नतीजा गर्म हवाएं, जलवायु परिवर्तन, सूखा, अधिक वर्षा व न्यूनतम अन्न उत्पादन के रूप में देखने को मिलेगा.

सिर्फ समस्या बता देना हल नहीं होता. हम सिर्फ सवाल छोड़ कर चलें जाएँ यह कहीं से भी सही नहीं है. गलतियाँ हम कर चुके हैं और नासमझी में लगातार करते जा रहे हैं. इन गलतियों को सुधारने का हमारे पास अब भी एक मौका है. हमारे पास एक हथियार है, वृक्ष. कहते हैं धरती के दो तिहाई भाग पर जल है और शेष भूमि, शेष एक तिहाई के लगभग आधे से ज्यादा हिस्से पर हम इंसानों का कब्ज़ा है. हमें ज्यादा कुछ नहीं करना सिर्फ एक पेड़ लगाना है.


आप मानें या नहीं, 300 पेड़ मिलकर एक व्यक्ति द्वारा पूरी ज़िंदगी में फैलाए गए प्रदूषण को ख़त्म करने की क्षमता रखते हैं. इमारतों के आस-पास उगाये गए पेड़ घरों में एसी की ज़रुरत में 30 प्रतिशत की कमी करते हैं. तो अगर इस बार पृथ्वी दिवस पर कुछ अच्छा करने का मन हो, तो बिना दूसरी बार सोचे आज ही एक पेड़ लगाएं.

अगर आप ऐसा नहीं कर रहे तो बुरा मत मानिए लेकिन आपको इस पृथ्वी पर रहने का कोई हक नहीं. जिसने जिंदगी भर अपनी गोद में पाला क्या उसके ज़ख्मों पर मरहम लगाना आपका काम नहीं? ये ज़ख्म भी इसे हमसे मिले हैं. तो सिर्फ सोचिये नहीं, कुछ कर दिखाइए-वृक्ष लगाइए. 

Thursday, 21 April 2016

बाइक पर 1 लाख 20 हज़ार किलोमीटर का सफ़र करने निकला, लखनऊ का 'गौरव'!

           मोटर बाइक चलाना किसे पसंद नहीं होता, लेकिन क्या आप में इतनी हिम्मत है कि एक रोज़ अचानक बाइक उठाकर पूरे देश का चक्कर लगाने का मन बना लें? शायद अब आप सोचने पर मजबूर हों कि ऐसा मज़ाक मैंने क्यों कर दिया.



 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक शख्स, गौरव सिद्धार्थ. उम्र केवल 23 साल, मनोविज्ञान विषय से ग्रेजुएट. गौरव के मन में जाने कैसे पूरे देश के मनोविज्ञान को समझने का ख़याल आया और हद से गुजरते हुए उन्होंने अपनी बाइक से पूरे देश में 1.2 लाख किलोमीटर का सफ़र तय करने की ठान ली. बाइक से लेकर जीपीएस डिवाइस और जैकेट से लेकर दस्तानों तक गौरव ने सब कुछ मेड इन इंडिया चुना.

गौरव ने सिर्फ यह सपना ही नहीं देखा, गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज कराने और स्वदेशी को समर्थन देने के लिए गौरव, एक रोज़, मम्मी का आशीर्वाद लेकर अपनी हीरो इम्पल्स बाइक 'बावरी 2.0' पर निकल पड़े! मम्मी ने कहा,'बहादुर बनो, हिम्मत रखो और जिंदगी से प्यार करते रहो.'

यात्रा के पहले फेज़ में लम्बी दूरी के मोटरसाइकिलिंग अनुभव के बिना 17 सितम्बर 2015 को गौरव उस यात्रा पर निकल पड़े, जिसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने 'एक ही देश में मोटरसाइकिल से सबसे लम्बी यात्रा' की कैटेगरी में जगह दी थी. उस वक़्त यह रिकॉर्ड लगभग 40 हज़ार किलोमीटर का था. गौरव बिना किसी तरह के सुरक्षा उपकरण के देश की सबसे ऊंची चलने लायक सड़क लेह-करडूंगला टॉप की और बढ़ चले थे. वहां पहुंचकर गौरव ने पूरा एक घंटा बिताया और बर्फ से ढंके पहाड़ों से मानों हाथ मिलकर वापस लौटे.


लेह की परिक्रमा कर लखनऊ लौटे गौरव ने दूसरे फेज़ में नार्थ-ईस्ट रूट पर बाइक घुमा ली. सबसे मुश्किल परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारते हुए गौरव आगे बढ़ते रहे. मुश्किलें ज़रूर आईं लेकिन गौरव हाथ पर हाथ रखकर बैठने वालों में से नहीं थे, उनका जुनून उनको हर उस हद तक ले गया जहाँ कोई आम इंसान जाने से घबराता है, और यही बात उन्हें बाकियों से अलग बनाती है. कई कई दिनों तक भूखे पेट रहते हुए, खुले में रात बिताकर और जाने कितनी दिक्कतों का सामना करते हुए गौरव ने यह सफ़र पूरा किया. वह इसे किसी रोमांच से कम नहीं मानते.

जब गौरव नार्थ-ईस्ट से लौटे तो उनके पास ढेरों यादों के साथ आगे की यात्रा के लिए कई सबक थे. मुश्किल हालातों में क्या और कैसे करना है, गौरव ने काफी हद तक समझा. इस वक्त उनकी जीपीएस डिवाइस 12000 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा दिखा रही थी. काफी सोचने के बाद अब गौरव ने पश्चिमी भारत में कदम रखने का मन बनाया, बाइक उठाई और राजस्थान और गुजरात राज्यों में अनगिनत संस्कृतियों, लोगों, रहा सहन और खानपान से मुलाकात करने चल दिए. इन राज्यों में सैकड़ों नए दोस्त बनाते हुए गौरव ने 14000 किलोमीटर से ज्यादा का सफ़र तय किया.

दक्षिण भारत की ओर बढ़ते हुए गौरव ने जब 40000 किलोमीटर का सफर तय किया तो वह सुर्ख़ियों में आ गए. कहते हैं उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है, लेकिन यहाँ तो सूरज जैसे जैसे चढ़ रहा था, उसकी चमक बढ़ती जा रही थी. अपनी हीरो इम्पल्स उर्फ़ बावरी 2.0 से अब तक 60000 किलोमीटर से ज्यादा बाइक चला चुके गौरव का सफ़र अब भी जारी है.

अपने इस सफ़र में गौरव कई बड़ी हस्तियों से मिले. योगगुरु बाबा रामदेव, आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर, 16 साल से अनशन पर बैठीं इरोम शर्मीला, समाजसेवी अन्ना हजारे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां हीराबेन मोदी से लेकर देश की बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी इनफ़ोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति तक सभी ने गौरव से मिलकर उनके इस प्रयास को सराहा और उनका हौसला बढ़ाया है.


इतना ही नहीं, गौरव ने पिछले साल 14 फरवरी से 9 अप्रैल के बीच कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपनी साइकिल 'बावरी' से साइकिलिंग भी की. जिसने उनकी इस बाइक राइड की बुनियादी नींव रखी. गौरव को तभी ये ख्याल आया कि अगर साइकिल से इस 4750 किलोमीटर की यात्रा में भारत को देखना इतना रोमांचक रहा है तो क्यों न 1.2 लाख किलोमीटर की यात्रा कर इसे और करीब से देखा जाए.

न तो उनकी बाइक के पहिये थमे हैं और न ही उनका हौसला. यूं तो बाइक्स के शौक़ीन कई मिल जाएँगे लेकिन अगली बार अगर ओरेंज कलर की हीरो इम्पल्स पर कोई दिखे, तो हो सकता है वह अपनी उड़ान को पंख दे रहा गौरव सिद्धार्थ हो.

 ( गौरव से जुड़ी एक बात और, कल कुछ ऐसा हुआ जिसकी शायद मुझे कोई उम्मीद नहीं थी. उनके बारे में और जानने के लिए फेसबुक पर मैंने गौरव सिद्धार्थ का नाम सर्च किया. कुछ पोस्ट देखीं, तस्वीरें देखीं. और जब मैंने माउस पॉइंटर 'add friend' बटन की और बढ़ाया तो वहां 'confirm' और 'not now' का option दिख रहा था. इसका मतलब गौरव ने मुझे पहले ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी. क्यों कब कैसे! पता नहीं. लेकिन जिस इंसान के पूरे देश में सैकड़ों हजारों दोस्त बन रहे हों उसका मुझे रिक्वेस्ट भेजना किसी उपहार से कम नहीं था. Thanks Gaurav! ज़िंदगी तो सिर्फ आप जी रहे हो, हमारी तो बस कट रही है. )

Source-
https://wrangler-ap.com/in/truewanderer/entry/3885-120000-kms--(Guinnness-World-Record-attempt)


Monday, 18 April 2016

और जब मैंने बर्तन धोए!

आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, लेकिन आज हालात कुछ बदले हुए से लग रहे थे. परिवार एक शादी में शामिल होने गाँव गया था और मैं घर पर अकेले किसी राजा की तरह चहलकदमी कर रहा था. अपने मन को हर पसंदीदा काम करने के लिए तब तक मनाता रहा, जब तक थक कर चूर नहीं हो गया. नज़रें घड़ी की ओर उठीं तो दोनों सूइयां मुस्कराते हुए 10 बजकर 10 मिनट का इशारा कर रही थीं.
   
     भई हमने अपने अभिन्न अंग मोबाइल महाशय से सॉरी बोलते हुए सोने का मन बनाया ही था कि याद आया, दोपहर से लेकर रात के खाने तक के सारे बर्तन मेरे इंतज़ार में बैठे हैं. तो मैं बर्तन धुलूँगा? एक पल तो मुझे ये समझने में लग गया कि यहाँ पर दूसरा कोई नहीं है जिसे यह काम सौंपा जा सके. 'हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा', यही सोचकर हमने बाहें समेटीं और ठीक 10 बजकर 18 मिनट पर घर में बर्तनों की आवाज़ सुनाई देने लगी. एक के बाद एक, बर्तन मानों बढ़ते जा रहे थे. छोटे-छोटे चम्मच मानों लुका-छिपी खेल रहे थे और कुकर-कड़ाही किसी बड़े दैत्य की तरह मुझे चुनौती दे रहे थे.


     एक के बाद एक बर्तन को बेमन से घिसता मैं ऊब चुका था. अब समझ आ रहा था कि मम्मी क्यों बेवजह बर्तन जूठे करने से मना करती हैं, पर मैं अपनी आदत से बाज़ नहीं आता. हालाँकि अब मेरी मेहनत रंग लाने लगी थी और बर्तन मुझे मेरी ही सूरत दिखाकर हंसने लगे थे, वहीँ काली कड़ाही एकमात्र कठिन चुनौती बनकर सामने थी. बाकी बर्तनों को धुलकर किनारे करने के बाद हमने कुकर जी की सेवा शुरू की. ख़ुशी हुई कि उन्होंने जल्दी ही हथियार डाल दिए.

     अब मैं बुरी तरह थककर चूर हो चुका था और मुझे गुस्सा भी आ रहा था, सारा गुस्सा काली कड़ाही पर उतारते हुए मैं टूट पड़ा. मैं घिसता जा रहा था लेकिन कड़ाही ने मेरा साथ न देने की ठान ली थी. आखिर मैंने मान लिया कि इसका कुछ नहीं हो सकता. बाकी बर्तनों को किचन में सजाने के बाद मैंने कड़ाही को यूं ही छोड़ दिया.
 
    बिस्तर पर आकर लेटा था तभी कल सुबह बने पालक के पकौड़े याद आए, पूरी-कचौरी, चटपटी सब्जी से लेकर ढेर सारे पकवान याद आने लगे. इन सारे पकवानों में एक चीज़ सामान थी और वो इनकी तेल में छनछन! अब मुझे किचन में पड़ी काली कड़ाही से सहानुभूति हो रही थी जो खुद जलकर मुझे पकवानों का आनंद देती रही है. एक बार फिर मैं कड़ाही पर हाथ घिस रहा था, लेकिन इस बार प्यार से. शायद ये मेरा प्यार ही था कि कड़ाही में मुझे मेरा मुस्कराता चेहरा नज़र आने लगा था और काली कड़ाही अब बर्तनों की रानी की तरह किचन में सजा दी गई थी.
 
    ठीक 12 बजे जब मैं फिर से बिस्तर पर गया तो थकान से ज्यादा संतोष था और माथे पर शिकन नहीं होंठों पर मुस्कान थी. आज मैंने सिर्फ बर्तन ही नहीं अपने मन को भी धोया था, उस रात सच में मैं बहुत सुकून से सोया था.